Sunday, September 15, 2013

मोदी विमर्श ५

मोदी से भी टुच्चा  कोइ हो सकता है क्या? मोदी की एक बात बताइये जो उस फासिस्ट फिरकापरस्त को युगद्रष्टा साबित करे! अमित शाह को भेज दिया है यूपी 
को गुजरात बनाने. मुझे तो ताज्जुब होता है की कोइ पढ़ा-लिखा आदमी एक ऐसे शखस का समर्थन करे जो चुनावी ध्रुवीकरण के लिए  गाडी में अग्लाग्वाये और उसका बहना बनाकर भीषण नरसंहार और सामूहिक सार्वजनिक बलात्कार आयोजित करे. फर्जी मुठभेड़ें करवाए!! करोड़ों खर्च करके छत्तीसगढ़ में नकली लापंडित जी की गले देने की इजाज़त मैं सबको नहीं देता. पहले तो इस गले के लिए माफी मांगियेल किलका बनाए, गरीब आदिवासियों की जमे३एनेन अपने पूंजीपति आकाओं को औने-पौने दम बेच बड़े जैसे उसके बाप के जागीर हो. मीडिया हैप और आरेसेस के समर्थन के अलावा एक गुण बताइये अपने चहेते नेता का. न भाजपा आयेगी न मोदी का छत्तीसगढ़ का किला दिल्ली पहुंचेगा. किसी भी देश का सबसे खतरनाक वर्ग मध्यवर्ग होता है.


सुधा जी! आज तक तय नहीं हो पाया आग किसने लगाया था, लाशों पर राजनीति करने वाले मृतकों का धर्म नहीं देखते, दिल्ली में अगर कोइ ब्राह्मण किसी दलित को मार डे तो क्या कलकत्ते का दलित आपको मारकर उसका बदला चुकायेगा. राज्य का करत्व्य लोगों की जान-माल की रक्षा होती है, बदले में नरसंहार नहीं. आपने यदि कह दिया होता कि आपकी वाल पर सिर्फ सहमति और समर्थन की प्रतिक्रियाएं वंचित हैं तो मैं बिलकुल कमेन्ट न करता. इस तरह की असहिष्णुता फासीवाद की पहली निशानी है.


@राजेश जी संघी और कांग्रेसी घोटाले और साम्राज्यवाद की दलाली में जुड़वा भाई हैं. भाजपा के एक अध्यक्ष और इम्पे कैमरे के सामने दलाली लेते पकडे गए, एक मुख्यंमंत्री जेल जा चुका और यदि न्याय न्यायपूर्ण होता तो कितने और जाते, वही हाल कांग्रेस का है. दोनों ही एक दूसरे से बढ चढ सद चाड के देसी विदेसी कंपनियों को सार्वजनिक संपत्ति औने-पौने दामों बेचते रहे अपनी जेबें भरने के लिए. मैं दुनिया के सारे बुद्धिजीवियों को चुनौती देता हूँ कि मोदी का एक वाक्य उद्धृत करे जो साबित करता हो कि वह युगद्रष्टा है?


सुधा जी मैं मार्च में २ हफ्ते गुजरात में था और नुमाइश के लिए रखा वह डब्बा भी देखा.आप सहजबोध से सोचिये, फैजाबाद से हर स्टेसन पर उत्पात मचाते आ रहे हजारों लम्पट कारसेवकों से भरी गाड़ी में १००-५० लोग आकार आग लगाने की हिम्मत नहीं करेंगे. आप तो रेल अधिकारी हैं. जिस प्लेटफार्म पर गाड़ी के डिब्बे में आग लगी वह प्लेटफार्म गेट के लेवल से बहुत नीचा है ऐसे में बाहर से ऐसा बहार से विस्फोटक फेंकना जो पूरे डब्बे में आग लगा दे, असम्भव सा है. रेल मंत्रालय की फोरेंसिक जांच समिति ने भी यही राय दिया था कि बाहर से आग लगना संभव नहीं है.  जिस तरह की बजरंगी लम्पट भीड़ ने अगले कई दिनों तक कोहराम मचाये रखा उसी तरह के हजारों लोग उसे गाड़ी में थे, कुछ प्लेर्त्य्फार्म पर भी रहे होंगे. क्यों नहीं चंद आगजनी करने वालों को पकड़ और खदेड सके. और यदि पूर्व-नियोजित न होता तो घंटों में ही इतने त्रिशूल तलवारें, गैस सिलिंडर, बम और अन्य हथियार कहाँ से आ गए. राज्य का कर्तव्य है क़ानून व्यवस्था बनाए रहे, मुख्यमंत्री के करीबी मंत्री और अधिकारी जन्संम्हार और बलात्कार (सामूहिक और सार्वजनिक) का परोक्ष संचालन करते रहे.  अगर आप की बात मान भी लिया जाए कि कुछ मुसलामानों ने गोधरा में आग लगाई तो उन्हें सजा दीजिए, प्रदेश भर के मुसलमानों को क्यों? नाथू राम गोडसे तो ब्राह्मण था, गांधी की ह्त्या के बाद ब्राह्मणों का क़त्ल-ए-आम तो नहीं हुआ.


जी बिलकुल नहीं भूला हूँ. महीनों हम्लोक राहत कार्यों में लगे थे. जे.एन.यु. हम कुछ छात्र कई जानें भी बचा सकने में सफल हुए थे. और पेलत से प्र्ताधान मंत्री बने मिस्टर क्लीन नमे कहा था, "बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है." राज्य प्रायोजित दोनों दोनों जनसंहारों में काफी समानता है, एक के निंदा दूसरे का महिमा मानदं अनुचित है. एक जनसंहार दूसरे का औचित्य नहीं साबित करता. उस वक़्त के क्कास्न्ग्रेसी नेता उतने हे बड़े समाज के अपराधी हैं जितने मोदी और उसके गुर्गे. एक फर्क दोनों में यह था कि कांग्रेस के पास बजरंगी लम्पटों जैसे कोइ संगठित लम्पट दल नहीं है. 


Correct your information, Thianman was 1989 not 1987, it was a brutal suppression of students movement for a socialist freedom which the capitalist pather's government could not tolerate. 1984 pogrom and Gujrat pogrom have many similarities -- boith were conducted and sponsored by respective governments . The Congress leaders involved with Rajiv Gandhi at the head are as big social criminals and anti-nationals as Modi and his men. One thing Congress lacked was an organized lumpen brigade like bajrangdal and VHP
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वैसे तो दोगलापन पूंजीवाद और उसकी रखैल राजनीति और अन्धराष्ट्रवाद  का  सामान्य नैसर्गिक गुण  है जो फासीवादी राजनीति में अपने वीभत्स और बेहूदे रूप में परिलक्षित होता है. इन कमीनों के पास कोइ विचार तो होता नहीं, बिना जाने समझे गांधीवादी समाजवाद अपना लेते हैं और दूसरे मुह से गांधीजी की कायरतापूर्ण ह्त्या को गांधीवध कहकर महिमामंडित करते हैं. और माफ़ कीजियेगाका की ज्यादातर पढ़े-लिखे जाहिल इस तरह के फरेबियों के अंध-भक्त बन जाते हैं लेकिन कभी बता नहीं पाते की किस बात से वे गांधी के हत्यारों  की वैचारिक संतान को युग पुरुष मानते हैं जिसने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से  चुनावी फायदे के लिए जनसंहार और सामूहिक बलात्कार का आयोजन किया हो?  

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