Thursday, September 12, 2013

है मेरा वजूद तेरे वजूद की बदौलत

है मेरा वजूद तेरे वजूद की बदौलत
है ही नहीं एहसास-ए-ज़िंदगी तुम्हारे एहसास के बगैर
आती है जब भी  याद गम-ए-ज़हाँ की
होती है बहुतायत उनमें यादों की तुम्हारी
याद है है वो दोराहा
 इश्क़-ए-माशूक़ और इश्क़-ए-जहाँ का
जहाँ हम पहले मिले थे
किया था वायदा जो हमने लेकर हाथों में हाथ
गम-ए-जहाँ के साथ मिलाकर गम-ए-खुदी को
इन्सानियत के सफर में चलने का साथ साथ 
विचल गए तुम खत्म होता जब तक पैमाना
चोर के कोतवाल को डाँटने की तर्ज पर
अब दिखा रहे हो उल्टा आइना 
[ईमि/12.09.2013]

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