खुली लहराती ज़ुल्फ की आज़ादी
कितनी आज़ाद हैं ये खुली लहराती ज़ुल्फ
गुलाब के जूड़ों से मुक्ति में आता है इसे लुत्फ
झंझट सी लगती थी रेशमी साड़ी की सलवटें
घूमो आज़ादी मे जींस में या लेते रहो करवटें
क्यों करो बोझिल कलाइयों को दर्जनों
चूड़ियों से
क्यों आहट दो आने की खड़काके उन्हें पहले से
बदल रहा है सौंदर्य का प्रतिमान और मानदंड
मानता नहीं पुरातन हो जैसे बालक उद्दंड
देखो और लो बदलाव की रफ्तार को पहचान
बदला है शब्दकोष देख नारी प्रज्ञा का अभियान
पकड़ो वक़्त की नब्ज़ मोबाइल के शाफ्टवेयरसे
सोने-चांदी की व्यर्थता उवाचो नये तेवर से
मोहताज़ नहीं ये आँखे किसी पेंसिल या काजल की
संवेग है इनमें तकलीफ के इक उमड़ते समंदर की
सोने के झुमके, हीरे की बूंदों से मुक्त करो कानों को
पहुँचने दो उनमें जंग-ए-आज़ीदी के तरानों को
नहीं चाहते ये होठ लालिमा किसी लिप्स्टिक या केसर की
नैसर्गिक सुर्खी है इनमें इन्किलाबी जज्बात-ओ-तेवर की
नहीं पहनेगें पाजेबों की बेड़ियां और अब ये पांव
गढ़ेंगे नये अंतरिक्ष, नापेंगे नित नये-नये ठाँव
लौटो आज घर देकर नई परवाज को अंजाम
दिखायेगा आइना रौनक का नया मुकाम.
[ईमि/07.09.2013 ]
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार-8/09/2013 को
ReplyDeleteसमाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
शुक्रिया. देखता हूँ, अभी
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