इन आँखों में छिपा है दर्द गम-ए-जहाँ का
और चेहरे पर जंग-ए-आज़ादी का ज़ज्बा
चलती हैं उन्मुक्त उंगलियां जब गिटार पर
कर देती हैं पैदा इंक़िलाबी स्वर और ताल
हो सवार इसके नग्मों की उफनती लहरों पर
पार कर जाती है तक़लीफ का उमड़ता समन्दर
[ईमि/13.09.2013]
और चेहरे पर जंग-ए-आज़ादी का ज़ज्बा
चलती हैं उन्मुक्त उंगलियां जब गिटार पर
कर देती हैं पैदा इंक़िलाबी स्वर और ताल
हो सवार इसके नग्मों की उफनती लहरों पर
पार कर जाती है तक़लीफ का उमड़ता समन्दर
[ईमि/13.09.2013]
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