Thursday, September 26, 2013

भगत सिंह के जन्मदिन के उपलक्ष्य में

भगत सिंह के जन्मदिन के उपलक्ष्य में

भगत सिंह का सपना था एक शोषणमुक्त समाज
बढ़ता ही जा रहा है मगर शोषण दमन का राज
सोचा था भगत सिंह ने मिल साथियो के संग
शहादतें इंक़िलाबी नवजवानों की दिखलायेंगी रंग
गये अंग्रेज मगर छोड़ गये तामझाम
रंग गये उसी रंग में सभी देसी हुक्मरान
मिल मज़हब के ठेकेदारों से कराया रक्तपात
रुक नहीं रही तब से फिरकापरस्ती की उत्पात
इतिहास दुहराता नहीं खुद को सच है यह बात
प्रतिधवनियां मचाती हैं उससे ज्यादा खुराफात
ले लिया इतिहास ने पूरा एक चक्कर
गुलामी आयी है अब भूमंडलीय पूंजी बनकर
नहीं है अब किसी क्लाइव लॉयड की दरकार
सारे सिराजुद्दौला भी बन गये हैं मीरज़ाफर
नहीं है मगर अब भी निराशा की कोई बात
धधकेंगे ही नवजवानों में इंक़िलाबी ज़ज़्बात
शहादतें भगत सिंहों की जाती नहीं बेकार
सपना शोषण-मुक्त समाज का होगा साकार
सारी हदें पार कर चुकी है अब सरमायेदारी
जल्दी ही आयेगी अब इसके विनाश की बारी
समझेगा मेहनतकश इसकी भूमंडलीय चाल
निकल पड़ेगा दुनिया भर में ले इंक़िलाबी मसाल
स्वाहा हो जायेंगे भूमंडलीय पूंजी के महल-ओ-किले
भस्म हो जायेंगे देसी कारिंदों के सारे काफिले
ख़ाकनसीनों की बस्ती में होगी तब चहल-पहल
न होगा कोई भूखा नंगा न राजा न ही रंक
होगा भगत सिंह का सपना साकार तब
मानव-मुक्ति का परचम लहरायेगा जब
दिया था भगत सिंह ने ज़ुल्म के मातों का वास्ता
क्रांतिकारियों के पास नहीं है और कोई रास्ता
याद रखेंगी नई पीढ़ियां को भगत सिंह की यह बात
पैदा करती रहेगी जो उनमें इंक़िलाबी जज़्बात
भगत सिंह को लाल सलाम लाल सलाम
इंक़िलाब ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद ज़िदाबाद
[ईमि/26.09.2013]

Wednesday, September 25, 2013

तुम्हे हारना ही है फासीवाद


तुम्हे हारना ही है फासीवाद
ईश मिश्र
निकलता है जब कारवानेजुनून मेहनतकशों का
तोड़कर जाति-धर्म-रंग और राष्ट्रीयता की दीवारें
मार्च करता है उन मैदानों और खेतों से
हैं जो कब्रगाहें भूत-ओ-भविष्य के हिटलरों की
चंगेजों और नादिरशाहों की 

तुम्हारी हार निश्चित है हिटलर के वारिसों
तुम अभिशप्त हो हारने के लिए फासीवाद के सिरमौरों
उसी तरह जैसे हारते आये हो तारीख के पन्नों में
हमारे हाथों में बन्दूक ही नहीं कलम भी है
जो औज़ार के साथ हथियार भी है हमारा
कांपते हो जिसके खौफ़ से तुम 
मुसोलिनी की औलादों, फ्रैंको के वारिसों
मजबूर हो तुम हारने के लिए फासीवाद
उसी तरह जैसे अवश्यंभावी है जीत इंकिलाब की

साथ हैं हमारे यादें क्रिस्टोफर काद्वेल की
रहते थे जो इंग्लैण्ड में
लिखते थे आज़ादी के तराने
और मरशिया सरमाये के निजाम का
आया जब ख़तरा आज़ादी पर स्पेन में
छोड़ा नहीं कलम उठा लिया बन्दूक
शहीद हो गए जंग-ए-आज़ादी की बेदी पर
खोदते हुए फसीवाद की कब्र स्पेन की धरती पर
अभिशप्त हो तुम हारने के लिए फ्रैंको के वारिसों
उसी तरह हारा था जैसे तुम्हारा वह कमीना पूर्वज

उड़ जाओगे तिनके की तरह
बढ़ेगा आगे जब कारवाने जुनून 
ले  यादें साथ कामरेड चे की
खाकर कर कसम लाल फरारे की
निकल पड़े थे जो कर पार सीमा देशकाल की 
  फहराने इंक़िलाबी परचम धरती के सीने पर  
गुनगुनाते हुए बरतोल ब्रेख्त के इंक़िलाबी तराने
लिखते हुए एक सुंदर दुनिया के नये फसाने
डरकर जंग-ए-आज़ादी के शैलाब से

मार दिया था तुमने जिसे कायराना फरेब से
काँप रहा हो अब लहू के उनके एक-एक कतरे से
बन गये हैं जो ज़ंग-ए-आज़ादी के हरकारे

हर रोज हार रहे हो जिससे तुम कायर फासीवाद

निकल रहा हूँ जंग-ए-आ के लिए लेकर कलम
तथा बुलंद इन्किलाबी इरादों के जज्बात
और विरासत शहादत की भगत सिंहों की
हम ख़त्म कर देंगे गुलामी का निजाम
ख़त्म होते-होते जंग-ए-आज़ादी ऐ फासीवाद!

हारोगे ही तुम हिटलरों और मुसोलिनियों
नादिरशाहों और चंगेजों
अभिशप्त हो हारने को तुम
मौदूदियों और गोल्वल्करों
बिन-लादेनों और मोदियों

उमड़ पड़ा है जन सैलाब खोदते हुए तुम्हारी कब्रें
दफन करेगा आवाम तुम्हे तुहारे पूर्वजों के साथ
हारोगे ही तुम ऐ फासीवाद!
मुसोलिनी-हिटलरों की तरह
पराजयतुम्हारी नियति है फासीवाद!
तुम्हे हारना ही है

फ़ौज से नहीं
जीतेंगे हम यह जंग-ए-आज़ादी 
जनवाद के जनसैलाब से
जीतना ही है हमें यह जंग
उसी तरह जैसे अभिशप्त हो तुम हारने के लिए
हिटलरों के वारिसों और मुसोलिनी की औलादों!
हारोगी ही तुम 
और जीतेगा आवाम
[ईमि/२५.०९.२०१३]

Sunday, September 22, 2013

बेचना किताब जाहिलों के शहर में

हमेशा गलत शहर में गलत माल लेकर पहुंचती हो
अंधों के शहर में आइना बेचती हो गंजों के शहर में कंघी
कंघी बेचो अंधों के शहर में गंजों के शहर में बेचो आइना
चाहती हो मुनाफा बेचकर किताब जाहिलों के शहर में?
[ईमि/22.09.2013]

Friday, September 20, 2013

लल्लापुराण 113

ज्ञानी और विद्वान का सम्मान देने के लिए, राका जी,  आपका आभार. वैसे मैं न तो ज्ञानी हूं और न ही विद्वान, कुछ लोगों को कभी कभी गलतफहमी हो जाती है. विमर्श-क्षमता उम्र निरपेक्ष हाती है. मैं तो गांव से आया एक साधारण व्यक्ति हूँ. दर-असल हम सब साधरण इंसान हैं और कुछ असाधरण दिखने के चक्कर में दुखी आत्मा बन जाते हैं. दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि इलाबाद के सारे संच शुरू होते हैं स्वस्थ-सार्थक विमर्श के वादे और दावे के साथ जैसै ही विचारों के टकराव विमर्श की धार पैनी करते दिखते हैं किसी ल किसी की कुंठा या अहं सामने आ जाता है, निराधार व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाता है और मंच टूटने के कगार पर पहुंच जाता है. मैं व्यक्तिगत और सार्वजनिक का भेद नहीं मानता यदि वह तथ्यों तर्कों पर आधारित आलोचना हो, निराधार फतवेबाजी या गाली-गलौच  नहीं. स्वस्थ विमर्श के लिए मतभेदों के प्रति न्यूनतम सहिष्णुता आवश्यक है. 

लल्लापुराण 112

The idea and practice of goodness and truth does not naturally come to a "civilized man" naturally but is inculcated with the application of reason and conscience. One's "natural" self id product of one's natural socialization that contains "natural" duality. The civility introduces duality. One wants to look what one is not, leading to perennial inner contradiction of essence and appearance. By the virtue of the fact that we are living in a "civilized" world we are acting any way. Our acting must be a well thought with the consent of the conscience. Most visible example of "civilized" duality is family. Parents and children live under the same roof without ever transparently interacting, they only communicate. And the exceptions only prove the rule. This duality of civility is also quite visibly exemplified  in love affairs under genderised thought structures. To be transparent, to look what one is and trying to be what one ought to be, needs unceasing acting (in a metaphorical sense) against one's "civilized" self in order to know and practice good and truthfulness. What came as good and truthfulness in my particularly socialized behavior as a Brahman boy in a Brhmanical feudal social structure, were the inhuman Varnashram values. I had to apply my mind to comprehend them and combining mind and conscience I had to constantly act against them and internalize them. Asharam and Ramdev kinds are not acting to be or do good but they are living their normal behavior to look what they are not. One's mindset and conduct is formed by 2 elements- reason and conscience. Reason tells us what is good or bad but cant move us to do this or that. It is conscience that moves us to do good or bad but does not know by itself what is good or bad. Therefore with harmoniously coordinated dialectical unity of reason and conscience is necessary to be or do good. With proportionately combined application of mind and conscience, one must constantly act to do and be good by dialectical unity of the theory and practice. By continuously doing so, goodness is internalized in the personality as guiding principle.        

लल्ला पुराण 111

Life is an acting on the world stage. In this play the actor is him/herself scrpt writer and director also. keep acting to be good to do good and the character in course of time you would be internalize the good character you are performing. Those who do not have anything real in life and are bereft of enthusiasm and try to look what they are not, read fakeness between the without realizing that they are reading their own mindset.

Pritish Agarwal, No dear this prescription is for the ordinry men nd women like me and you. I have used the term acting here not the exactly literal sense but metaphorical. The continuously evolving knowledge process is based on key maxim of "question anything and everything" and involves not only learning but more importantly unlearning. During our socialization under so many irrational and mystical taboos and inhibitions, we acquire so many values and senses of good-evil;morality-immorality and sense of unknown abstract fear; insecurity......... independent of our conscious will or effort . I call this as acquired morality that needs to be questioned and replaced by rational morality acquired by conscious effort of dialectical  unity of the mind and the conscience. The goodness and truth emerging through the dialectical process of learning must be acted upon continuously. Acting to be good and do act gradually enters into your value system and helps you resolving the contradiction of praxis, i.e. contradiction of theory and practice.       

खुदा के नाखुदा

जब से हुआ इस दुनिया में खुदा का वजूद
हो गया इंसान इंसानियत से महफूज़
फंस गया वह मज़हबों के मायाजाल में
चल पड़ा फिरकापरस्ती की भेड़ चाल में
नहीं रहा कभी निजी आस्था का मामला
तैयार करता रहा है रक्तपात का मसाला
कभी नहीं रहा मज़हब सियासत से ज़ुदा
दिखता रहा है खुदा बनकर ना-खुदा
करते हैं इसके नुमाइंदे हमला इंसानियत पर
शरमाते नहीं पोप-मुल्ला-बाबा की हैवानियतपर
करते हैं ये मानवता पर भीषण अत्याचार
बेटी-मां का साथ-साथ सामूहिक बलात्कार
करता हूँ किसी भगवान को मानने से इंकार
होता है जिसके नाम पर हैवानी दुराचार
[ईमि/21.09.2013]

Thursday, September 19, 2013

नहीं मारते डींग

नहीं है डींग हैं ये जंग-ए-आज़ादी का ऐलान
गूलामी-परस्त लोगों में है मच जाता कोहराम
जाता है धुप में जब आज़ादी का कारवाने जुनून
शाये में बैठे शरीफों का बेवजह खौलता है खून
[ईमि/20.09.2013]

ये बेहोशी का आलम


है ये बेहोशी का आलम मन की  मदहोशी से
फंसते हैं भुलावे में  मन की आँखें न खोलने से
वैसे ही दिखेगी दुनिया सदा गफलत में रहने से
बदलेगी जरूर मगर सजग कोशिस करने से.
[ईमि/१०.०९.२०१३]

Wednesday, September 18, 2013

बेलौस मुहब्बत


हम क्यों बदलें देख दुनिया की हिमाकत
बेलौस मुहब्बत करते रहेंगे हम
गम-ए-जहां में मिलाकर दिल का गम
अज्म-ए-जुनूं से आगे बढ़ते रहेंगे हम
[ईमि/१८.०९.२०१३]

लल्ला पुराण ११०

बिलकुल सही कह रहे हैं यदि हम आसान राहों पर चलकर कठिन मंजिल पा लीं तो इससे अच्छा कुछ नहीं, रास्ते की कठिनाई पार करने में खर्च की गयी ऊर्जा का अन्यत्र उपयोग कर सकते हैं. लेकिन एक बे-उसूल और वैचारिक वर्चस्व की पराधीनता से जूझते समाज में उसूलों की ज़िंदगी की  राह  खुद-ब-खुद कठिन हो जाती है. इलाहाबाद में मैं राजनैतिक गतिविदियों से जुदा जिसकी समझ से नौकरशाही में जाने की बात कभी विचारार्थ ही नहीं था.पिताजी से पैसा लेने का मतलब था उनकी राय भी मानना और आईएएस/पीसीयस  की कोशिस, तो १८ साल के उम्र से मैंने पैसा ले
ना बंद कर दिया. वैसे भी उन दिनों खाते-पीते किसान परिवारों में भी नकदी का अभाव ही रहता था. अब कौन नहीं चाहेगा उन्मुक्त छात्र जीवन? लेकिन विचारों की आज़ादी की कीमत पर नहीं. कौन चाहेगा २०-२१ की उम्र का लगभग एक साल जेल में बिताना, लेकिन सरकार की मर्जी मानकर २० सूत्रीय कार्यक्रम का स्वागत करना पड़ता. कोइ दिखावे या शक्ति प्रदर्शन के लिए कठिन रास्तों का चुनाव नहीं करता, जिस तरह की ज़िंदगी आप चुनते हैं रस्ते  की सुगमता या जटिलता उससे तय होती है. अब १९८३ में जेयनयु में एक आन्दोलन के सिलसिले में निष्कासन से बचने के लिए २ लाइन का माफीनामा लिखना था, वह नहीं कर सकते थे, इसलिए रास्ते कठिन हो गए, सीनियर रिसर्च फेलोशिप के साथ छात्रजीवन ३ साल के लिए निलंबित  हो गया को मेरी वाम्छ्ना नहीं थे बल्कि जिस तरह की ज़िंदगी का चुना किया उसकी तार्किक परिणति. झुकाकर सर जो हो जाता सर मैं नौकरी १५ साल पहले पक्की हो जाती. कौन स्वेच्छा से बेरोजगारी में  परिवार चलाना चाहेगा? लेकिन जिस तरह की ज़िंदगी चुना कलम की मजदूरी से घर चलाना उसकी तार्किक परिणति थी. मित्र शान या ढिठाई दिखाने के लिए कठिन रास्ता कोइ नहीं चुनता. शांतिपूर्ण ढंग से क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएँ पूंजीपति गांधी की सलाह मानकर तरसती बन जाए और श्रम के साधनों पर श्रमिक का अधिकार हो जाए तो सर पर कफ़न बांधकर मजदूर क्यों क्रान्ति का रास्ता अपनाएगा? मुझे तो सरल रास्ते नहीं मिले नास्त्क हूँ, गाड ही नहीं है तो गाडफादर साला कहाँ से आयेगा और आप जानते ही हैं शिक्षा जगत में गाद्फादारों की मठाधीसी कैसी है, नौकरियों को अपने बाप की जागीर समझते हैं. तो आ बैल मुझे मार की शैली में मुश्किल रास्ते नहीं चुनता, सिन्द्धान्तों की राह मुश्किल होती ही है.

Tuesday, September 17, 2013

प्यार में लेन देन

प्यार में होती है जहां लेन देन की बात

प्यार के नहीं छलावा के होते जज़्बात
[ईमि/17.09.2013]

International Proletariat 44

I am not talking about sanity-insanity, I believe that the majority always consists of sanity whose criminal silence and conformity; immoral indifference allows the insane minority to run the show. All I want to say is the concept of God is created by historical man according to their historical needs that is why its characteristics and role have been changing across the time-space. Hindus still have number of Gods and Goddesses with varying capacities and area of operation. Most of blood shed on the earth has taken place on the varying interpretation of the concept of God.

The same difference between Presidential and Parliamentary forms of the governments is the same  as Bush and Blair. The so-called representative democracy represents the interest of the modern ruling classes -- the corporate led imperialist global capital -- form does not matter as the essence remains the same. The only answer is the peoples' democracy that abolishes the private ownership of public resources.

मूश्किल लेकिन नामुमकिन नहीं

मूश्किल जरूर है हवा को पीठ न देना
और चलाना कश्ती धारा के विपरीत
लेकिन नामुमकिन नहीं 
हैं इरादे ग़र बुलंद
घर्षण से ही लहरों के 
मिलती वह ऊर्जा 
चलती जिससे जीवन की गाड़ी
निर्वात कभी नहीं रहता
कभी तुम होते हो
कभी अवसाद
[ईमि/17.09.2013]

Monday, September 16, 2013

सभी जी लेते हैं आसान ज़िंदगी


सभी जी लेते हैं आसान ज़िंदगी
हमने तो जानबूझ कर  मुश्किलों को चुना 
मिलता जो आत्मबल का सुख
चलते हुए कठिन रास्तों पर
देता वह इतनी ऊर्जा
आसान लगते रास्ते कठिन 
[ईमि/१६.०९.२०१३]

नहीं है मकसद हमारा ख़त्म करना कोइ धर्म


नहीं है मकसद हमारा ख़त्म करना कोइ धर्म
 देता गरीब को जो खुशियों का भ्रम
मकसद है ख़त्म करना वे हालात
मिलती है धर्म को जिनसे खुराक
मिलेगी लोगों को अगर हकीकी खशी
भ्रम की होगी किसी को जरूरत नहीं.
[ईमि/१६.०९.२०१३]

Sunday, September 15, 2013

दंगा

जमातियों और संघियों ने की मजहब पर खतरे की बात
मच गई हर हर महादेव और अल्ला-हो-अकबर की उत्पात
मजहब बचा कि नहीं ये तो वही जानें या खुदा जाने
उनके इस धर्मोंमाद ने लेली कितने इन्सानों की जानें
किया कत्ल-ए-आम लूटा-जलाया मकान-ओ-दुकानें
दिखाते ये दरिंदे अपनी अपनी मज़हबी मर्दानगी की शान
लूटते इज्जत औरतों की लेने से पहले उनकी जान
इन्सानियत की लाशों पर चाहते हैं करना मतदान की खेती
फर्क नहीं पड़ता इनको कि थीं वे औरतें किनकी बहन बेटी
लोगों के सोये ज़मीर को जगाने का अलख जलाना है
उन्हें इन दरिंदों के असली चेहरे से वाक़िफ कराना है
इस उन्मादी भीड़ में बन जाते जो दरिंदे और हैवान
हिन्दु-ओ-मुसलमान से बनाना है उन्हें इन्सान
[ईमि/16.09.2013]

आसान है बने रहना आस्तिक

आसान है बने रहना आस्तिक
चलते रहो बस लीक पर
जीना नहीं बिताना भर है ज़िंदगी
पूर्वजों की सीख पर
नास्तिकता है
बहुत जद्दोजहद का काम
करना पड़ता है इसके लिये
भगवान-ओ-भूत के भय का काम तमाम
झेलना पड़ता है तोड़ने की
रीत-रिवाज़ो का इल्जाम 
नहीं आसान डगर सफर की
आस्तिकता से नास्तिकता तक
पार करना होता है विघ्न-बाधायें
संसकार-ओ-परंपरा के आदतों की
[ईमि/16.09.2013]

इश्क की हकीकत

वो लोग नावाकिफ हैं इश्क की हकीकत से
जो इसे दर्द का दरिया या समंदर कहते हैं
इश्क तो संजीवनी है सभी रोगों की
ईंधन है भावनाओं की गाड़ी के इंजन की
[ईमि/१५.०९.२०१३]

कितना ज़ालिम है खुदा,

कितना ज़ालिम है खुदा,
 मिट जाती है हस्ती उसकी
हो जाता है जो उसको प्यारा
[ईमि/१५.०९.२०१३]

मुस्कराहट

हर मुस्कराहट खतरनाक नहीं होती
कुछ  दती  हैं दिल को सुकून भी
[ईमि/15.09.2013]

मोदी विमर्श ५

मोदी से भी टुच्चा  कोइ हो सकता है क्या? मोदी की एक बात बताइये जो उस फासिस्ट फिरकापरस्त को युगद्रष्टा साबित करे! अमित शाह को भेज दिया है यूपी 
को गुजरात बनाने. मुझे तो ताज्जुब होता है की कोइ पढ़ा-लिखा आदमी एक ऐसे शखस का समर्थन करे जो चुनावी ध्रुवीकरण के लिए  गाडी में अग्लाग्वाये और उसका बहना बनाकर भीषण नरसंहार और सामूहिक सार्वजनिक बलात्कार आयोजित करे. फर्जी मुठभेड़ें करवाए!! करोड़ों खर्च करके छत्तीसगढ़ में नकली लापंडित जी की गले देने की इजाज़त मैं सबको नहीं देता. पहले तो इस गले के लिए माफी मांगियेल किलका बनाए, गरीब आदिवासियों की जमे३एनेन अपने पूंजीपति आकाओं को औने-पौने दम बेच बड़े जैसे उसके बाप के जागीर हो. मीडिया हैप और आरेसेस के समर्थन के अलावा एक गुण बताइये अपने चहेते नेता का. न भाजपा आयेगी न मोदी का छत्तीसगढ़ का किला दिल्ली पहुंचेगा. किसी भी देश का सबसे खतरनाक वर्ग मध्यवर्ग होता है.


सुधा जी! आज तक तय नहीं हो पाया आग किसने लगाया था, लाशों पर राजनीति करने वाले मृतकों का धर्म नहीं देखते, दिल्ली में अगर कोइ ब्राह्मण किसी दलित को मार डे तो क्या कलकत्ते का दलित आपको मारकर उसका बदला चुकायेगा. राज्य का करत्व्य लोगों की जान-माल की रक्षा होती है, बदले में नरसंहार नहीं. आपने यदि कह दिया होता कि आपकी वाल पर सिर्फ सहमति और समर्थन की प्रतिक्रियाएं वंचित हैं तो मैं बिलकुल कमेन्ट न करता. इस तरह की असहिष्णुता फासीवाद की पहली निशानी है.


@राजेश जी संघी और कांग्रेसी घोटाले और साम्राज्यवाद की दलाली में जुड़वा भाई हैं. भाजपा के एक अध्यक्ष और इम्पे कैमरे के सामने दलाली लेते पकडे गए, एक मुख्यंमंत्री जेल जा चुका और यदि न्याय न्यायपूर्ण होता तो कितने और जाते, वही हाल कांग्रेस का है. दोनों ही एक दूसरे से बढ चढ सद चाड के देसी विदेसी कंपनियों को सार्वजनिक संपत्ति औने-पौने दामों बेचते रहे अपनी जेबें भरने के लिए. मैं दुनिया के सारे बुद्धिजीवियों को चुनौती देता हूँ कि मोदी का एक वाक्य उद्धृत करे जो साबित करता हो कि वह युगद्रष्टा है?


सुधा जी मैं मार्च में २ हफ्ते गुजरात में था और नुमाइश के लिए रखा वह डब्बा भी देखा.आप सहजबोध से सोचिये, फैजाबाद से हर स्टेसन पर उत्पात मचाते आ रहे हजारों लम्पट कारसेवकों से भरी गाड़ी में १००-५० लोग आकार आग लगाने की हिम्मत नहीं करेंगे. आप तो रेल अधिकारी हैं. जिस प्लेटफार्म पर गाड़ी के डिब्बे में आग लगी वह प्लेटफार्म गेट के लेवल से बहुत नीचा है ऐसे में बाहर से ऐसा बहार से विस्फोटक फेंकना जो पूरे डब्बे में आग लगा दे, असम्भव सा है. रेल मंत्रालय की फोरेंसिक जांच समिति ने भी यही राय दिया था कि बाहर से आग लगना संभव नहीं है.  जिस तरह की बजरंगी लम्पट भीड़ ने अगले कई दिनों तक कोहराम मचाये रखा उसी तरह के हजारों लोग उसे गाड़ी में थे, कुछ प्लेर्त्य्फार्म पर भी रहे होंगे. क्यों नहीं चंद आगजनी करने वालों को पकड़ और खदेड सके. और यदि पूर्व-नियोजित न होता तो घंटों में ही इतने त्रिशूल तलवारें, गैस सिलिंडर, बम और अन्य हथियार कहाँ से आ गए. राज्य का कर्तव्य है क़ानून व्यवस्था बनाए रहे, मुख्यमंत्री के करीबी मंत्री और अधिकारी जन्संम्हार और बलात्कार (सामूहिक और सार्वजनिक) का परोक्ष संचालन करते रहे.  अगर आप की बात मान भी लिया जाए कि कुछ मुसलामानों ने गोधरा में आग लगाई तो उन्हें सजा दीजिए, प्रदेश भर के मुसलमानों को क्यों? नाथू राम गोडसे तो ब्राह्मण था, गांधी की ह्त्या के बाद ब्राह्मणों का क़त्ल-ए-आम तो नहीं हुआ.


जी बिलकुल नहीं भूला हूँ. महीनों हम्लोक राहत कार्यों में लगे थे. जे.एन.यु. हम कुछ छात्र कई जानें भी बचा सकने में सफल हुए थे. और पेलत से प्र्ताधान मंत्री बने मिस्टर क्लीन नमे कहा था, "बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है." राज्य प्रायोजित दोनों दोनों जनसंहारों में काफी समानता है, एक के निंदा दूसरे का महिमा मानदं अनुचित है. एक जनसंहार दूसरे का औचित्य नहीं साबित करता. उस वक़्त के क्कास्न्ग्रेसी नेता उतने हे बड़े समाज के अपराधी हैं जितने मोदी और उसके गुर्गे. एक फर्क दोनों में यह था कि कांग्रेस के पास बजरंगी लम्पटों जैसे कोइ संगठित लम्पट दल नहीं है. 


Correct your information, Thianman was 1989 not 1987, it was a brutal suppression of students movement for a socialist freedom which the capitalist pather's government could not tolerate. 1984 pogrom and Gujrat pogrom have many similarities -- boith were conducted and sponsored by respective governments . The Congress leaders involved with Rajiv Gandhi at the head are as big social criminals and anti-nationals as Modi and his men. One thing Congress lacked was an organized lumpen brigade like bajrangdal and VHP
.

वैसे तो दोगलापन पूंजीवाद और उसकी रखैल राजनीति और अन्धराष्ट्रवाद  का  सामान्य नैसर्गिक गुण  है जो फासीवादी राजनीति में अपने वीभत्स और बेहूदे रूप में परिलक्षित होता है. इन कमीनों के पास कोइ विचार तो होता नहीं, बिना जाने समझे गांधीवादी समाजवाद अपना लेते हैं और दूसरे मुह से गांधीजी की कायरतापूर्ण ह्त्या को गांधीवध कहकर महिमामंडित करते हैं. और माफ़ कीजियेगाका की ज्यादातर पढ़े-लिखे जाहिल इस तरह के फरेबियों के अंध-भक्त बन जाते हैं लेकिन कभी बता नहीं पाते की किस बात से वे गांधी के हत्यारों  की वैचारिक संतान को युग पुरुष मानते हैं जिसने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण से  चुनावी फायदे के लिए जनसंहार और सामूहिक बलात्कार का आयोजन किया हो?  

माशूक के जलवे पर

 इश्क़ तो इश्क़ है किसी से हो सकता है
माशूक के जलवे पर दिखाए गर कोइ मालिकाना हक़
उसके प्रेम की प्रामाणिकता पर होता है मुझे शक
[ईमि/१५.०९.२०१३]

Saturday, September 14, 2013

मौजूदगी का एहसास


कहाँ हो जाती हो गायब देकर मौजूदगी का एहसास
चाहिए दीदार-ए-दिल नहीं महज आभास. हा हा
[ईमि/१३,०९.२०१३]

Friday, September 13, 2013

वही लड़की जो गिटार बजाती है



वही लड़की जो गिटार बजाती है
ईश मिश्र

वही लड़की जो गिटार बजाती है
सुबह-सुबह उस लड़की से लम्बा चैटालाप हुआ
उस वार्तालाप को, दर-असल, उसी ने यह नाम दिया
वही लड़की जो गिटार बजाती है
चैटालाप में भी प्रतिध्वनित हो रही थी
गिटार के तार पर उसकी उंगलियों की थिरकन
सुनाई दे रहे थे मानव-मुक्ति के तराने
नारी प्रज्ञा और दावेदारी के गाने
वही लड़की जो गिटार बजाती है
निकालती है अजीब-ओ-गरीब ध्वनियां
करती हैं जो बात उतारने की धरती पर स्वर्ग
साबित हो सकती हैं जो खतरा देश की सुरक्षा के लिए
वही लड़की जो गिटार बजाती है
चिंतातुर हूं उस लड़की की सुरक्षा के लिए
देश की सुरक्षा से
क्येंकि वह गिटार बजाती है
और सरकार डरती है गिटार से
उसी तरह जैसे डरती है हेम मिश्र की डफली से
और छीन लेती गढ़चिरौली में उसकी डफली
बंद कर देती है जेल में
लेकिन रोक नहीं पाती डफली की आवाज़
गूँज रही है जो चारों ओर
टकराकर हिमगिरि के ऊँचे शिखरों से
उस लड़की के चैटालाप सुनाई दे रहीं थीं
प्रतिध्वनियां उसकी उंगलियों की थिरकन की
खोज सकती है सरकार इनमें साज़िश
देश की सुरक्षा के खिलाफ
और छीन सकती है उसका गिटार
और कर सकती है बंद जेल में
य मार सकती है किसी मुठभेड़ में
क्योंकि वह गिटार बजाती है
और सरकार गिटार से डरती है
उसी तरह जैसे वह डरती है सांईबाबा के लैपटाप से
और घेर लेती है पुलिस उस प्रोफेसर का घर
बना लेती है बंधक पूरे परिवार को
और उठा ले जाती है लैपटॉप
चिंतित हूँ उस लड़की की सुरक्षा के लिए
क्योंकि वह गिटार बजाती है
वही लड़की जो गिटार बजाती है
और डरती है सरकार डफली और गिटार से
उसी तरह जैसे डरती है
पेनड्राइव और लैपटॉप से
कलम और किताब से
फिर भी अच्छा लगा उस लड़की से लंबा चैटालॉप
लेकिन डरता हूं
कहीं खतरा न बन जाए उसका गिटार
देश की सुरक्षा के लिए
और जप्त हो जाए
देश की सुरक्षा के लिए
लेकिन वह भी क्या लड़की है
वही जो गिटार बजाती है
भगवान-भूतों के डर को धता बताती है
और गिटार बजाती है
वही लड़की जो गिटार बजाती है

[ईमि /14.09.2013]