2016 में जेएनयू पर हमले और आंदोलन के समय से ही टुकड़े-टुकड़े, देशद्रोह और सेक्स का अड्डा नरेटिव के साथ एक और नरेटिव चल रहा है कि जेएनयू में बुढ़ापे तक लोग छात्र बने रहते हैं, इसके खंडन में मैंने एक लेख पोस्ट किया था। आज पढ़ने की उम्र पर एक सज्जन ( एक कॉलेज में असोसिएट प्रोफेसर) ने लिखा कि वहां 25 से 65 की उम्र तक छात्र हॉस्टल में रहते हैं। मैंने लिखा:
Ish Mishra 25 से 65 साल तक कोई हॉस्टल में नहीं रहता, या रह सकता यह महज अफवाहबाज भक्तों के दिमागों की खुराफात है। आप कितने ऐसे लोगों को जानते हैं? जेएनयू में तो पिछले 43 सालों में ऐसा कोई दिखा नहीं। इस तरह की अफवाह फैलाने वाले ट्रोल, शिक्षा के दुश्मन और देशद्रोही होते हैं? किसी शिक्षक द्वारा ऐसा करना तो जघन्य अपराध है, ऐसे लोग शिक्षक होने के लिए अपात्र नहीं कुपात्र होते हैं तथा सामाजिक अपराधी।
उन्होने इसके जवाब में लिखा:
25 से 65 साल को संख्या में मत समझिए इस को लंबी अवधि के रूप में समझिए।बाकी अपात्र और कुपात्र तय करने का आपको अधिकार तो नहीं है किन्तु आप हमारे बुजुर्ग हैं इसलिए सब चलेगा।
उस पर:
25 से 65 सिर्फ संख्या नहीं होती एक फर्जी नरेटिव है जिसे तमाम लोग भजन की तरह रटते रहते हैं जिससे समाज में एक गलत अवधारणा स्थापित होती है। जेएनयू के छात्रों की उम्रदराजी की अफवाह आपका मौलिक नहीं है, ट्रोल कंपनी द्वारा 3 साल से चलाई जा रही अफवाह है जिसकी भजनमंडली में आप भी शरीक हो गए जो एक शिक्षक को शोभा नहीं देता, शिक्षक का बहुत महत्व होता है लेकिन तमाम अभागे उसे समझते नहीं सिर्फ नौकरी करते हैं और भजन गाते हैं। मैंने एक पोस्ट डाला जेएनयू के छात्रों की उम्रदराजी पर और नाम के साथ कई दृष्टांत दिया था कि इवि में के कई छात्र मुझसे (1972 से) बहुत पहले विवि में आए और 4 साल बाद मेरे विश्वविद्यालय छोडने के 10 साल से अधिक समय बाद तक विवि में छात्रसंघ का चुनाव लड़ते रहे। कन्हैया जैसे कुछ अपवाद जो बीए के बाद 2-3 साल यूपीएससी की कोचिंग के बाद जेएनयू ज्वाइन किए और छात्रसंघ की अध्यक्षी के साथ 29-30 साल में पीएचडी पूरी किए। आपने यदि पीएचडी की तो कितनी उम्र में पीएचडी की? जहां तक शिक्षक की अपात्रता-कुपात्रता की राय के अधिकार की बात है तो मैं अपने अधिकार खुद तय करता हूं, आप मेरे अधिकार नहीं तय करेंगे। जहां तक बुजुर्गी का सवाल है उसकी तर्क में मुझे कोई रियायत नहीं चाहिए, न मैं किसी अन्य को इसकी रियायत देता हूं। शिक्षक की नौकरी एक अलग ढंग की नौतरी है जिसके साथ तमाम नैतिकताएं जुड़ी हैं। कोई शिक्षक यदि छात्रों को बदनाम करने त़के लिए अफवाह फैलाए तो न सिर्फ वह शिक्षक होने का अपात्र या कुपात्र है पर सामाजिक अपराधी है। विनम्रमआग्रह है कि शिक्षक होने के महत्व को समझें और मिशाल से पढ़ाएं क्योंकि शिक्षक प्रवचन नहीं देता बल्कि मिशाल पेश कर पढ़ाता है। मेरी बात बुरी लगे तो क्षमा कीजिएगा, अच्छी लगे तो एक अच्छे शिक्षक बनें। यदि आधे शिक्षक भी शिक्षक होने का महत्व समझ लें तो आधी क्रांति अपने आप हो जाएगी। लेकिन ज्यादातर अभागे हैं महज नौकरी करते हैं और 3-5। सादर।
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