Tuesday, November 12, 2019

लल्ला पुराण 290 (जेएनयू)

जेएनयू में प्रवेश न पाने की कुंठा की बात आपको नहीं उन सबको सुना रहा हूं, जो जेएनयू में न पढ़ पाने की कुंठा में जेएनयू के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं, चाहे एक पैसा भी प्रत्यक्ष टैक्स न देते हों टैक्सपेयर के पैसों की दुहाई देते रहते हैं। जेएनयू में आपकी क्या मेरी उम्र का व्यक्ति भी अप्लाई कर सकता है। बाकी आप तो फीस बढ़ोत्तरी की हिमायत कर रहे हैं, तो जाहिर है आपको देने में सक्षम होना चाहिए। वरना आप जैसे संपन्न सवर्ण यदि फीस के लिए दूसरे का मुंह ताकेंगे तो पहली पीढ़ी के पढ़ने वाले दलित लड़के बढ़ी फीस कहां से देंगे? वैसे जेएनयू में प्रवेश में पहली पीढ़ी के पढ़ने वाले कोटि में मुझे भी 2 अंक मिले थे। वैसे मैं चाहूंगा कि आप प्रवेश लेलें और प्रवेश के लिए आने-जाने, ठहरने का तथा बढ़ने के पहले की दर से आपकी फीस आदि का खर्च मैं दे दूंगा। एक बार आप जेएनयू की हवा में सांस ले लिए तो धनपशुओं के हिमायती तथा वर्सेणाश्रमी से एक विवेकशील इंसान बन जांएगे और आपकी भाषा बदल जाएगी। वैसे कुछ ऐसे भी होते हैं कि 'चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहें भुजंग'। दुनिया में शिक्षा के मामले सर्वोच्च स्थान पर अमेरिका की नाक में दम किए उसीके पिछवाड़े का फिद्दी सा देश क्यूबा है जिसका शिक्षा बजट लगभग 15% है तथा कांवड़ियों पर फूल बरसाने में हजारों करोड़ तथा परजीवी साधू-सवाधुओं की सुविधा के लिए कुंभ में करोड़ों बहाने वाले इस मुल्क में 3% से कम। जगतगुरु होने का शगूफा छोड़ने वाले हमारे देश में आज भी करोड़ों बच्चे, उच्चशिक्षा की बात तो दूर, स्कूल तक का मुंह नहीं देख पाते। उठिए, जागिए, शिक्षित होइए और आगे बढ़िए. विशाल मंदिर जरूर बनाइए लेकिन कम-से-कम कैंची और नेलकटर का स्वदेशी उत्पादन करना सीख लीजिए जिसे भी हमें जापान-चीन से मंगाना पड़ता है। इसे अपने ऊपर न लें।

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