सुबह-सुबह पहली चाय के साथ मेनस्ट्रीम में रोजा लक्ज़मबर्ग के रूसी क्रांति पर 1918 में लिखे ऐतिहासिक पर्चे का सारांश पढ़ा और उनकी चेतावनियां भविष्यवाणी साबित हो रही हैं. पहली बार 1975 में पढ़ा था, तब ढंग से समझ में नहीं आया था. उन्होंने सर्वहारा की तानाशाही और लेनिन के नेतृत्व में क्रांतिकारी नेतृत्व की समझ की सराहना के साथ चेताया था कि चूंकि यह सर्वहारा की तानाशाही का पहला प्रयोग था, वह भी साम्राज्यवादी रक्तपात और लूट से मचे हाहाकार के बीच. इसलिए खास परिस्थिति की आवश्यकता स्वरूप अपनाई गई रणनीति को अंतरराष्ट्रीय सर्वहारा आंदोलन के सार्वभौमिक समाजवादी मॉडल के रूप में पेश करना खतरनाक हो सकता है.
1871 में पोलैंड में जन्मी रोजा को 1919 में वाइमर रिपब्लिक की राष्ट्रवादी पुलिस ने पीटकर बेहोश करने बाद सेना की जीप में दूर ले जाकर गोली मार कर नदी में फेंक दिया था. क्या उन टुच्चे पुलिस अधिकारियों और रिपब्लिक के झंडाबरदारों को जरा भी यहसास रहो होगा कि वे दुनिया को कितनी बड़ी क्रांतिकारी बौद्धिक विभूति से वंचित कर रहे हैं. लाल सलाम कॉमरेड रोज़ा!
15.11.2016
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