Ravindra Upadhyaya जी सर, आपसे बिल्कुल सहमत हूं। कौटिल्य का अर्थशास्त्र, राज्य के सिद्धांत के अलावा शासनशिल्प का विस्तृत मैनुअल है तथा मैक्यावली का प्रिंस 65-70 पेज की पुस्तिका, जिसने छपते ही पूरे यूरोप में तहलका मचा दिया। दोनों ही अपने अपने तरह की कालजयी रचनाएं हैं। दोनों ही साध्य की सुचिता पर जोर देती हैं साधन की नहीं। दार्शनिक न्याय-अन्याय का निर्माण नहीं करता बल्कि पहले से ही समाज में मौजूद न्याय अन्याय पर प्रतिक्रिया देता है एवं उनकी विवेचना करता है। नवजागरण की ज्यादातर राजशाहियां खून-खराबे तथा छल-कपट से स्थापित थीं, उसका प्रिंस उन्हीं में से था। अर्थशास्त्र प्रिंस एवं डिस्कोर्सेज से लगभग 1800 साल पुराना ग्रंथ है। इसलिए मैक्यावली पश्चिम का कौटल्य कहना समुचित हो सकता है, कौटिल्य को पूरब का मैक्यावली कहना नहीं। किसी ने एक पोस्ट में दुख जाहिर किया था कि कुछ लोग चाणक्य ऐसा था -- वैसा था लिखते रहते हैं, उस पर यह कमेंट लिखा गया था जिसे मैंने पोस्ट कर दिया। कौटिल्य अर्थशास्त्र की स्थापित परंपरा की अप्रतिम विभूति हैं, मैक्यावली एक नई परंपरा का प्रतिपादक।
चाणक्य यानि कौटिल्य एक महान राजनैतिक चिंतक थे। वे पौराणिक कल्पित नहीं, ऐतिहासिक व्यक्तित्व थे। कौटिल्य की राज्य की परिभाषा, राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक अनुबंध के बौद्ध सिद्धांत के साथ राजनैतिक सिद्धांत के इतिहास में महान प्राचीन भारतीय योगदान है। उनका अपमान से जिक्र करने वाले को उसकी जहालत पर छोड़ देना चाहिए। बाक़ी किसी मातृहंता या गर्भवती पत्नी को घर से निकालने वाले का भी जिक्र सम्मान से करने में कोई हर्ज़ नहीं है।
चाणक्य यानि कौटिल्य एक महान राजनैतिक चिंतक थे। वे पौराणिक कल्पित नहीं, ऐतिहासिक व्यक्तित्व थे। कौटिल्य की राज्य की परिभाषा, राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक अनुबंध के बौद्ध सिद्धांत के साथ राजनैतिक सिद्धांत के इतिहास में महान प्राचीन भारतीय योगदान है। उनका अपमान से जिक्र करने वाले को उसकी जहालत पर छोड़ देना चाहिए। बाक़ी किसी मातृहंता या गर्भवती पत्नी को घर से निकालने वाले का भी जिक्र सम्मान से करने में कोई हर्ज़ नहीं है।
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