एक विवि के एक शिक्षक गोडसे के देशभक्त कहने के प्रज्ञा ठाकुर की आलोचना से छुब्ध हो टुकड़े-टुकड़े भजन गाने लगे, उस पर:
भारत तेरे टुकड़े की अफवाह का का भजन कब तक गाते रहेंगे? कितनी बार प्रमाणित हो चुका कि टुकड़े नारे भक्त घुसपैठियों ने लगाए थे। पुलिस 3 साल में चार्जशीट फाइल नहीं करसकी, अदालतों ने कह दिया छात्रों ने नारे नहीं लगाए थे, लेकिन एक ही अफवाह का हर बात पर भजन गाते हुए एक बार भी ध्यान नहीं आता कि शिक्षक की कुछ नैतिकताएं होती हैं। अगर गोडसे जैसा कायर हत्यारा आपके लिए देशभक्त है तो आपको अपनी सोच पर सोचना चाहिए। सिखों के जनसंहार का विरोध हम जेएनयू वालों ने किया था तथा नानाजी देशमुख जैसे संघियों ने उसका समर्थन किया था। सिखों के कत्ले आम को हमने बहस का मुद्दा बनाया था, संघी कैडर तो कत्लेआम में शामिल था। मैंने कई लेख लिखे तथा टाडा के खिलाफ हम वैसे ही लड़े थे जैसे पोटा के खिलाफ। गोडसे की भक्ति का भजन गाने के अलावा कभी कभी दिमाग का भी इस्तेमाल कर लिया करें, कभी कभी सोच लिया करें कि आप शिक्षक हैं। गोडसे की देशभक्ति के अपने विचारों पर एक बार पुनर्विचार कीजिए।