Janhastakshep:a campaign against fascist designs
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प्रेस विज्ञप्ति
१८ फरवरी २०१७
बिषय: बिहार में रोहतास
जिले के कोचस ब्लाक में नव्वा गाँव के भूपतियों
द्वारा गाँव के दो मजदूर युवकों पर बर्बरतापूर्ण पाशविक हमले की जांच
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक ईश मिश्र
और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय के डाक्टर विकास वाजपेयी की जनहस्तक्षेप की दो
सदस्यीय टीम ने २९ जनवरी को रोहतास जिले के कोचस ब्लाक के नव्वां गाँव के भूपतियों
द्वारा गाँव के ही दो युवा मजदूरों को जानलेवा, बर्बर यातना देने की घटना की जांच
के लिए गाँव का दौरा किया. जनहस्तक्षेप ने सोसल मीडिया पर इस घटना का एक वीडियो
देख कर इस दौरे का फैसला लिया था. टीम ने गाँव के विभिन्न तपकों के लोगों तथा
पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से बातचीत की.
घटना: २९ जनवरी को
सुबह ८ बजे सुरेश चौहान (नोनिया जाति) और विजय शर्मा (लोहार) गाँव के ही कुर्मी
जाति के भूपति रमाशंकर चौधरी से उनके निर्माणाधीन घर में साल भर काम की अपनी बकाया
मजदूरी माँगने गए. गौरतलब है कि यद्यपि गाँव की ये जातियां ओबीसी कोटि में चिन्हित
हैं लेकिन इनकी स्थिति गाँव के दलितों सी भी बदतर है.
मरणासन्न सुरेश चौहान का बनारस के एक
अस्पताल में इलाज़ चल रहा है, लकिन दूसरे पीड़ित विजय से हमारी मुलाकात हुई. विजय ने
बताया कि जब उसने बकाया मजदूरी के हिसाब-किताब पर जोर दिया तो रमाशंकर, उनका बेटा
पाताली और परिवार के अन्य लोंगों ने अधिक बोलने पर गंभीर परिणामों की धमकी दी.
दोनों मजदूरी की जिद करने लगे तो चौधरी के
परिजन दोनों को खींचकर घर के अन्दर ले गये. छत पर लेजाकर दोनों को नंगा कर डंडों
और लोहे की सरिया से अंधाधुंध पिटाई शुरू कर दी. धीरे धीरे यह बर्बरतापूर्ण
“तमाशा” देखने के लिए सैकड़ों का हुजूम जुट गया जिसमें से ज्यादातर उत्पीड़क के
सजातीय थे. काफी पिटाई के बाद उन पर ट्रैक्टर की बैटरी की चोरी का आरोप लगाने लगे.
घटना के चश्मदीद गाँव के एक लड़के ने इसकी सूचना विजय की माँ कौशल्या को दी. वह
दौड़कर घटनास्थल पर पहुँची और उत्पीड़कों से लड़कों पर रहम की गुजारिश करने लगी. उसकी
बात का उनपर उलटा असर हुआ और उसको भी बाहों पर लोहे की सरिया से पीटने लगे. मार
खाकर, हार कर वह घर वापस चली गयी. 2-3 बजे तक पिटाई और शरीर को गर्म लोहे की छड़ों
द्वारा दागने के बाद और ‘बेचारे से सरपंच’ की याचना के बाद दोनों युवकों को बेहोशी
की हालत में उनके दवाजों पर फ़ेंक दिया. गाँव के किसी आदमी की सूचना पर गाँव के
सरपंच, इम्तियाज़ अंसारी और मुखिया रमाकांत शाह भी 11 बजे के आस-पास मौके पर पहुँच
गए. सरपंच ने फोन पर टीम सदस्यों को बताया की जमींदार के परिवार वाले मुखिया को ‘खिलाने-पिलाने
घर के अन्दर ले गए और लड़कों पर रहम की उनकी फ़रियाद से उनके कानों पर जूँ तक नहीं
रेंगा. सपंच ने बताया कि सुरेश के भाई की शिकायत पर जब मुखिया के पास थाना-प्रभारी
का फोन आया तो उन्होने ‘गांव् में सबकुछ
ठीक-ठाक’
होने की बात कही. सरपंच पर उत्पीड़क परिवार और मुखिया ने सुरेश और विजय के चोरी के
‘इकरारनामे’ पर दस्तखत का दबाव डाला लेकिन उन्होंने दस्तखत नहीं किया.
इस दौरान सुरेश का भाई उसकी पिटाई की खबर सुनकर १२ बजे दिनारा थाने
पहुंचा और थाना प्रभारी अभिनन्दन कुमार सिंह को घटना से अवगत कराया. सुरेश का भाई
थाना प्रभारी से पुलिस सहायता की गुजारिश करता रहा. थाना प्रभारी उसकी फ़रियाद
सुनने की बजाय मुखिया को फोन किया और जैसा ऊपर कहा जा चुका है मुखिया द्वारा किसी
गंभीर बात से इन्कार कर दिया था. लानेवाले क्षत-विक्षत, बेहोशी की हाल में दोनों युवकों
को लेकर 8 बजे थाने पहुंचे.
एक निजी चिकित्सालय से उपचार के बाद घर लौटे विजय की शरीर के अंग-अंग
पर चोटों और गर्म लोहे से पिटाई के दाग दिल दहला देने वाले हैं. उसके बांये हाथ की कलाई हर गर्म सूजे के इतने
छेदों के निशान देख, गोदे जाते वक़्त की पीड़ा की कल्पना रोंगटे खड़ी करने वाली थी.
विजय जितनी ही प्रताड़ना सुरेश को भी दी गयी. जैसा कि वजय और अन्य लोगों ने बताया
कि जालिमों ने इम्तहां कर दी जब उन्होंने सुरेश के गुप्तांग में लोहे की गर्म छड
घुसेड दी. हम जब रमाशंकर के घर, घटना-स्थल पर गए तो 2 दिन पहले पटना से आई रमाशंकर
की बेटी ने उन दोनों और विजय की माँ पर चोरी का इल्जाम दोहराते हुए ‘गाँव वालों’
द्वारा ‘चोरों’ को सजा देने को उचित ठहराया. गौरतलब है की रमाशंकर और उसके बेटे
फरार चल रहे हैं. यह भी गौर तलब है कि नोनिया समुदाय के ज्यातर लोग उस दिन गुप्ता
धाम, तीर्थ लयात्रा पर थे.
राजनैतिक दलों की भूमिका
यद्यपि विभिन्न राजनैतिक दलों के लोगों ने गाँव का दौराकर घडियाली
आंसू जरूर बहाया लेकिन न तो किसी ने कोई सहायता की न ही कोई आश्वासन दिया. स्थानीय
यमयलए और नोनिया समुदाय की ही पर्यटन मंत्री भी गाँव में जा चुकी हैं. जिसका मतलब
सरकार को घटना के बारे में भली भांति जानकारी है, लेकिन न तो पीड़ितों को कोई
मेडिकल सहायता मिल पायी है न ही २० दिन बीत जाने के बाद भी मुख्य अभियुक्तों की
गिरफ्तारी. यह क़ानून-व्यवस्था की हालत पर एक गंभीर बयान तो है ही, सरकार का रवैया
यह भी बताता है की सरकार अपने ठोस चुनावी आधार, कुर्मी जाति को नाराज नहीं करना
चाहती है. इससे भी आश्चर्यजनक शोषितों की पैरोकारी का दावा करने वाली सीपीआई,
सीपीयम और सीपीआई(यमयल) लिबेरेसन जैसी पार्टियों की चुप्पी है. अखबारों की खबरों
और गाँव वालों से बात-चीत से पता चला कि सीपीआई(यमयल) न्यू डेमोक्रेसी एकमात्र
पार्टी है जिसने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है.
पुलिस-प्रशासन की भूमिका
हम थाना प्रभारी से मिलने दिनारा थाने गए, वे कहीं गए हुए थे. हम जांच
अधिकारी राजकुमार चौधरी और सहायक थाना प्रभारी बी सत्येन्द्र सत्यार्थी से मिले.
उनमें से किसी के पास इस बात का कोइ जवाब नहीं था की पुलिस शिकायतकर्ता, पीड़ित की
भाई की शिकायत को नज़र-अंदाज़ कर मुखिया के आश्वासन पर क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी
रही? यह न सिर्फ ड्यूटी के प्रति लापरवाही है बल्कि अपराध के प्रोत्साहन और उसमें
संलिप्तता जैसा है. जांच अधिकारी ने यह दावा जरूर किया की यदि ३ दिनों में
अभियुक्तों ने समर्पण नहीं किया तो उनके घर कुर्क कर लिए जायेंगे. डीयसपी नीरज
कुमार ने थाना प्रभारी की लापरवाही से अनभिज्ञता जताते हुए विभागीय कार्र्वाई का
वादा किया. आश्चर्य है की जिस बात का पता
हमें दिल्ली में चल गया उसकी जानकारी सम्बद्ध डीयसपी को नहीं थी? 18 फरवरी को हम
संभाग से डीआईजी से मिले तो उन्होंने घटना की बर्बरता पर सरोकार व्यक्त किया और
हमारे सामने, शायद अपने कनिष्ठ अधिकारी से फरार आरोपियों के घर कुर्क करने के आदेश
देने लगे. उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि घटना के 21 दिन बाद भी पीड़ितों
तक कोई सरकारी सहायता क्यों नहीं पहुंची और आरोपियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं
हुई? डीआईजी महोदय ने भी थाना प्रभारी की भूमिका के बारे में अनभिज्ञता दिखाया और
विभागीय जांच का आश्वासन दिया.
सिविल प्रशासन की भूमिका
जिलाधीश अनिमेष कुमार पराशर हमारे मिलने के आवेदन को नज़र-अंदाज़ कर
दफ्तर से निकल कर जाने लगे और हमें उन्हें
रास्ते में रोककर बात करनी पडी. वे कानून हर्जाने के बात करने लगे. उनके पास २० दिनों तक प्रशासन की निष्क्रियता
का कोई जवाब नहीं था. उनके पास पीड़ितों को मेडिकल सहायता के सवाल का भी कोई जवाब
नहीं था. उन्हें इस घटना के वीडिओ की भी कोई जानकारी नहीं थी. इन सब बातों से इस
जघन्य घटना के प्रति स्थानीय प्रसाशन का यही रवैया जाहिर होता है कि उसकी पूरी
कोशिश इसे दबाने की है.
निष्कर्ष
स्थानीय नागरिक व पुलिस प्रशाशन की यह आपराधिक निष्क्रियता यही ज़ाहिर
करती है की राज्य सरकार के उच्चतम हलकों से इस पूरी घटना तो चुपचाप दबाने की ही
कोशिश की जा रही है. यहाँ तक की विपक्षी पार्टियाँ भी सरकार की इस कोशिश में
सम्मलित हैं क्योंकि उन्हें इस मामले से कोई राजनैतिक फ़ायदा होता नज़र नहीं आ रहा
है. अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा ने 22 फरवरी को कोचस में जन-प्रदर्शन का आह्वान
किया है.
हम क्या चाहते हैं:
·
जनहस्तक्षेप मांग करता है कि इस घटना के पीड़ितों के इलाज की तुरंत व्यस्था
की जाये और उसका सारा खर्चा सरकार वहन करे. फिलहाल गाँव के गरीब चंदे कर के नका
इलाज करवा रहे हैं.
·
हम रोहतास जिले और समस्त राज्य के लोगों से अपील करते हैं कि वे इस
मध्य युगीन हैवानियत के खिलाफ लामबंध हों ताकि पीड़ितों व उनके परिवारों को न्याय
मिल सके और राज्य में सक्रिय सामंती, उत्पीड़क शक्तियों को हराया जा सके.
·
हम राज्य सरकार से मांग करते हैं कि दोषियों को सजा दिलवाने के लिए वह
बिना किसी लाग-लपेट के सख्त से सख्त कदम के उठाये और दिनारा थाने के थाना प्रभारी
की दोषियों के साथ शामिल मिली-भगत सख्त प्रशाशनिक कार्यवाही करे और उनके विरुद्ध आपराधिक
मामला दर्ज करे.
·
सरकार को पीड़ित परिवारों के लिए बिना तुरंत समुचित मुआवजा घोषित करे.
·
हम इस मामले को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सम्मुख भी रखेंगे और
मांग करेंगे किवह राज्य सरकार पर उपरोक्त मांगों की आपूर्ति के लिए दबाव बनाये.
-हस्ताक्षरित- -हस्ताक्षरित
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(ईश मिश्र)
(डॉ विकास बाजपाई)
संयोजक सह संयोजक