Friday, September 11, 2015

कलम का स्वाभिमान

नहीं करते आकस्मिक वार कायरों की तरह
करते नहीं छुप कर आघात रामों की तरह
न है कोई दंभ ताकत का न ओहदे का अभिमान
मर-मिटते हम बचाने को कलम का स्वाभिमान
हमले के पहले हम करते हैं ऐलान-ए-ज़ंग-ए-आज़ादी की
मुक्ति चाहते निज का नहीं कायनात की पूरी आबादी की
छिपाके रखते नहीं आस्तीन में बघनख मिलते जब गले
सियासती जंग का रुख कितना भी बेमाफिक हो जाये भले
मकसद हमारा पाक है और साफ दुश्मन की पहचान
करते हैं इसीलिए जंग-ए-आज़ादी का मुखर ऐलान
ऐलान से ही सकते में आ जाता है कारपोरेटी दुश्मन
विचारों से डरकर बौकलाहट में करता विचारकों का हनन
जानता नहीं एक साश्वत सत्य यह कारिंदा-ए-कॉरपोरेट
मरते नहीं विचार उगते हैं धरती पर बन बीज अनेक
लगे ग़र कलम पर बंद दिमाग तालिबानी पहरा
मुल्क पर छाये ग़र ज़हालत का संकट गहरा
बढ़ जाती है ऐसे में लड़ने की जरूरत
बचाना है इतिहास को होने से बदसूरत
हम लड़ेंगे साथी बदलने को हालात
जीतेंगे चलेंगे जब लेकर हाथों में हाथ
हम लड़ेंगे क्योंकि बिना लड़े कुछ नहीं मिलता
हक़ के एक-एक इंच के लिए है लड़ना पड़ता
हम लड़ेंगे अत्याचार के सर्वनाश के लिए
हम लड़ेंगे एक शोषणविहीन समाज के लिए
हम लड़ेॆगे इंसानियत के पैगाम के लिए
हम लड़ेंगे साथी साथियों के साथ के लिए
हम लड़ेंगे
(ईमिः11.09.2015)

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