रामायण , महाभारत, मनुस्मृति में जिन्हें नास्तिक कह कर बहिष्कार की बात की गई है ये उनमें से ही हैं जिन्हे वेद पढ़ने का अधिकार था -- चारवाक लोकायत परंपरा के भौतिकवादी. चारवाक ने कहा था तीनों वेदों (चौथे की रचना तब तक नहीं हुई थी) के रचइता भांड़, धूर्त तथा निशाचर थे. जिन्हें वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था वे बिना पढ़े वैदिक व्यवस्था का पालन करते रहे जैसे हम सब बिना समझे ही सुनकर सत्यनारायण की कथा का पुण्य पा लेते हैं. इसे ग्राम्सी के वर्चस्व के सिद्धांत से बेहतर समझा जा सकता है. सामाजिक विकास के उस चरण में सामाजिक चेतना का स्तर ऐसा नहीं था कि वैकल्पिक वेद रचते, जिसकी शुरुआत कबीर ने किया तथा फुले-अंबेडकर उस प्रक्रिया की प्रोन्नत कड़ियां हैं.
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