Wednesday, September 23, 2015

मार्क्सवाद 16

शालू 'मिताक्षरा' इस भूखंड मेँ भौतिकवाद की परंपराएं उतनी ही पुरानी हैं, जितनी आध्यात्मिक. यहां तक कि वैदिक धर्म यानि ब्राह्मण धर्म का पैरोकार कौटिल्य भी भौतिकवादी था, अर्थशास्त्र धर्शास्त्रीय विवेचनाओं से मुक्त है. धर्म तथा धार्मिक अंधविश्वासों का इस्तेमाल राजनैतिक उद्देश्यों के लिए करने की सलाह दी गयी है. सारा भौतिकवादी साहित्य ब्राह्मणों ने नष्ट कर दिया तथा अपने साहित्य में इनकी निंदा किया तथा माखौल उडाया. इनकी निंदा-भर्त्सनाओं ने ही वैज्ञानिक तेवर के हमारे इन पूर्वजों के विचारों से अवगत कराया. रामायण में अयोध्या कांड तथा अन्यत्र बार बार लोकायत अनुयायियों (नास्तिक ब्राह्मण), तथागतों तथा बौद्धों की संगति के खतरों के बारे में चेताया गया है. तुमने जो श्लोक उद्धृत किया है वह तो मनुस्मृति के कुतर्क का छोटा सा, नगण्य नमूना है. पूरा ग्रंथ ही किंवदंतियों. अंधविश्वासों तथा कुतर्कों का संकलन है. महाभारत में भी चारवाक (नास्तिक ब्राह्मण) के चरित्र के जरिए भौतिकवादी दर्शन का मजाक बनाया गया है, फिर भी विचार हैं कि मरते ही नहीं. चिंता की बात यह कि यही ग्रंथ तथा इनपर ब्राह्मणों का एकाधिकार हजारों साल वर्गीय तथा जेंडर वर्चस्व के प्रमुख स्रोत बने रहे तथा बात अभी खत्म नहीं हुई. "स्वेच्छा" से निम्नवर्ग तथा महिलायें मनुवादी मान्यताओं को मानते रहे. मेरे बचपन तक यह हकीकत थी, तेजी से बदल रही है . तुम उसका एक ज्वलंत उदाहरण हो. ऐसे मे ऐंतोनियो ग्राम्सी की बहुत याद आती है. उनका वर्चस्व का सिद्धांत, सभ्यता के इतिहास का साश्वत, सार्वभौमिक सिद्धांत सा लगता है. ऐसा तब तक लगता रहेगा जब तक शोषण पर टिका वर्ग समाज रहेगा. मनुवाद के प्रतिरोध का विमर्श उसी तरह मनुवादी पैराडाइम में हो रहा है जिस तरह राष्ट्रवादी विमर्श औपनिवेशिक पैराडाइम की परिधि में ही चला. जन्म के आधार पर मूल्यांकन मनुवाद (ब्राह्मणवाद) का मूलभूत सिद्धांत है. मनुवादी मानसिकता (जातिवाद) का एक ही समाधन है वर्गचेतना का प्रसार तथा वर्गीय लामबंदी. मनुवाद का एक जवाब -- इंकलाब ज़िंदाबाद.

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