Saturday, September 5, 2015

शिक्षा और ज्ञान 63



उच्च शिक्षा : ज्ञान तथा मौजूदा शिक्षा नीति
(सारांश)
कथनी-करनी का अंतर्विरोध प्रत्यक्ष या प्रकारांतर से सभ्यता के, यानि वर्गसमाज के इतिहास का साश्वत अंतरविरोध है। यह अंतर्विरोध ज्ञान की संस्थाओं द्वारा पोषित होता है. कार्ल मार्क्स ने लिखा है कि शासक वर्ग के विचार शासक विचार भी होते हैं, जो युगचेतना होती है. युगचेतना को सुव्यवस्थित रूप से प्रसारित करती हैं राज्य के वैचारिक उपकरण. शिक्षा सभ्यता के आदिकाल से ही युगचेतना यानि कि वैचारिक वर्गवर्चस्व को पोषित एवं सुदृढ़ करने का प्रभावी उपकरण रहा है. शासकवर्ग, मौजूदा संदर्भ में पूंजीपति वर्ग, महज भौतिक सामग्री का उत्पादन नहीं करता, विचारों का भी. व्यवस्था का अंतर्विरोध उसके वैचारिक उपकरण शिक्षा व्यवस्था में प्रमुखता से परिलक्षित होता है, जिसे ज्ञान की अज्ञात वस्तुनिष्ठा और शैक्षणिक अनुशासन के नाम पर दबाया-छिपाया जाता है. 1996 में डब्ल्यूटीओ द्वारा शिक्षा को व्यावसायिक सेवा के रूप में गैट में शामिल किये जाने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों के माध्यम से शिक्षा को भूमंडलीय पूंजी के लिए खोलने का दबाव पड़ रहा है. पिछली सरकार भी यही करना चाहती थी और य़फवाईयूपी थोप दिया था. जिस तरह टाडा की जगह उसकी नकारात्मकताओं को परिवर्धित करके पोटा लाया गया उसी तरह य़फवाईयूपी के सारे शिक्षाविरोधी प्रावधानों को परिवर्धित करके उससे भी 2 कदम आगे मौजूदा सरकार ने सीबीसीयस थोप दिया. विश्वबैंक के निर्देश पर बनी मौजूदा शिक्षानीति इसका ज्वलंत उदाहरण है. यह सब्जबाग दिखाती है व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास का, मकसद है युवाओं को तोता तथा भेंड़ एवं शिक्षकों को आज्ञाकारी चरवाहा बनाना. चुनाव आधारित क्रेडिट व्यवस्था (च्वायस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम) का घोषित उद्देश्य है विद्यार्थियों को बहुयामी वहुवैकल्पिक   विषयों से अवगत कराना तथा गतिशील बनाकर भूमंडलीय स्तर पर पहुंचाना. शिक्षाविदों के किसी विचार विमर्श के मानव संसाधन मंत्रालय तथा यूजीसी के अधिकारियों द्वारा कापी-पेस्ट पद्धति से तैयार किए गये प्रावधानों तथा पाठ्यक्रमों को ध्यान से देखने पर कथनी-करनी के अतर्विरोध की गूढ़ता साफ दिखती है. मसलन राजनीतिशास्त्र में हानर्स की डिग्री हासिल करने वाले विद्यार्थी 18 के बदले राजनीतिशास्त्र के 14 पाठ्यक्रम पढ़ेंगे. जो नहीं पढ़ेंगे उनमें भारत में उपनिवेशवाद तथा राष्ट्रवाद शामिल है. विद्यार्थी यह न जाने कि एक व्यापारिक कंपनी मुगल दरबार से व्यापार की अनुमति लेकर मुल्क में घुसी तथा किस तरह मीर जाफरों, रामनारायणों, सिंधियाओं, निजामों, पेशवाओं की मदद से 200 साल तक देश को गुलाम बनाकर लूटती रही. यह भी न जानें कि लोग लूट का तर्क समझने लगे और उसे खत्म करने के लिए जान लड़ा दिए. अगर वे औपनिवेशिक साम्राज्यवाद की गूढ़ता समझ लेंगे तो हजारों कंपनियों से निवेश के सरकारी समझौतों के निहितार्त भी समझने लगेंगे. उदारवादी, औपनिवेशिक साम्राज्यवाद तथा नवउदारवादी भूमंडलीय साम्राज्यवाद में खास फर्क यह है कि अब लॉर्ड क्लाइव की जरूरत नहीं है, सिराजुद्दौला भी मीरजाफ़र बन गये हैं.

प्राचीन यूनानी दार्शनिक प्लैटो की कृति रिपब्लिक तथा उनकी संस्था अकेडमी को यूरोपीय तथा अब सार्वभौमिक शिक्षा पद्धति तथा विश्वविद्यालय व्यवस्था पद्धति की बुनियाद माना जाता है. रिपब्लिक को रूसो ने शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ कहा था. कथनी-करनी का यह अंतरविरोध भी तब से ही है. प्लेटो शिक्षा के बारे में कहता है कि शिक्षा का काम आत्मा की आंखों को प्रकाश दिखाना है, उसकी स्वतंत्र आध्यात्मिक गतिशालता को बाधित करना नहीं. यानि शिक्षा का आत्मा के आंतरिक गुणों के निखारने का माहौल प्रदान करना है, आत्मा अपना विषय तथा उसका रास्ता खुद खोज लेगी. लेकिन शिक्षा प्रणाली की रूपरेखा की शुरुआत में कह देता है कि बच्चे मोम की तरह होते हैं, जो आकार देना चाहो दे सकते हो और आत्मा की आंखों पर सेंसरशिप की पट्टी लगा देता है. यह पर्चा ऐतिहासिक संदर्भ में ज्ञान की अवधारणाओं पर चर्चा के माध्यम से सीबीसीयस की विसंगतियों को उजागर करने का एक प्रयास है.

ईश मिश्र
असोसिएट प्रोफेसर
राजनीतिशास्त्र विभाग, हिंदू कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय
दिल्ली 110007
फोन 9811146846
ईमेलः mishraish@gmail.com  



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