Thursday, September 10, 2015

हमें लड़ना ही है

हमें लड़ना ही है साथी क्योंकि लड़ने की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं
हमें लड़ना है कलम की आज़ादी के लिए
हमें लड़ना है पाश की शहादत की हिफ़ाजत के लिए
हमें लड़ना है कलबुर्गी की विरासत को बढ़ाने के लिए
कलम से भयभीत कायर कट्टरपंथ को ये बताने के लिए
कि तोड़ोगे जब भी मेरा कलम और मुखर होगा तुम्हें और डराने के लिए
हमें लड़ना है न डरकर डर को डराने के लिए
लड़ना ही है समता के सुख का जश्न मनाने के लिए
(जन्मने की प्रतीक्षासूची में एक और अजन्मी कविता का इजाफा)

(ईमिः 11.09.2015)

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