Kanupriya समाज लार टपकाने की आज़ादी नहीं देता बल्कि संस्कृति तैयार करता है जो सेक्सुअलिटी की विकृत समझ पैदा करती है . जनतांत्रिक संस्कृति तथा सेक्सुअलिटी की पारस्परिकता की समझ से लार टपकाने वाली मर्दवादी संस्कृति पर रोक लगाई जा सकती है. सार्वजनिक स्थानों पर स्त्रियों की मुखर उपस्थिति में वृद्धि से इस प्रवृत्ति में कमी आती दिखती है. बदलाव मात्रात्मक ही है, गुणात्मक नहीं, वह तब होगा जब विचारधारा के रूप में मर्दवाद का मरशिया पढ़ा जायेगा.
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