731
न हिंदू धर्म खतरे में न ही इस्लाम खतरे में
न गीता
है खतरे में न ही कुरान खतरे में
न भगवान
खतरे में न ही अल्लाह खतरे में
इनके
खतरों से है अमन-ओ-चैन खतरे में
(ईमिः21.07.2015)
732
हमें लड़ना ही
है साथी क्योंकि लड़ने की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं
हमें लड़ना है
कलम की आज़ादी के लिए
हमें लड़ना है
पाश की शहादत की हिफ़ाजत के लिए
हमें लड़ना है
कलबुर्गी की विरासत को बढ़ाने के लिए
कलम से भयभीत
कायर कट्टरपंथ को ये बताने के लिए
कि तोड़ोगे जब
भी मेरा कलम और मुखर होगा तुम्हें और डराने के लिए
हमें लड़ना है न
डरकर डर को डराने के लिए
लड़ना ही है
समता के सुख का जश्न मनाने के लिए
(जन्मने की
प्रतीक्षासूची में एक और अजन्मी कविता का इजाफा)
(ईमिः 11.09.2015)
733
हम मुल्क
के दानिशमंद हैं
पाबंद
नियम-कानून के
पैबंद
नये निज़ाम के
दुश्मन
नैतिकता के खोखले पैगाम के
हम सोने
की कुर्सी के हक़दार
संस्कृति
के हम पहरेदार
कथनी-करनी
का साश्वत अलगाव
मजबूत
करता उनका सैद्धांतिक लगाव
हम
विमर्श में दक्ष हैं
बोलना हो
चाहे पक्ष मे चाहे पक्ष विपक्ष हो
पक्ष-विपक्ष
माया है वफा के आराध्य के समक्ष
जिनकी
खायेंगे गुण भी तो उन्हीं का गायेंगे
बदलता है
जैसे ही परवरदिगार
बदल जाता
है हमारे दिल का उद्गार
प्रभु तो
व्यापारी हैं हम हैं महज शिल्पकार
बाजार की
मांग पर हम गढ़ते विचार
शिल्पकार
से बन गये व्यापारी
दोगलापन
तो व्यवस्था का अभिन्न अंग है
हम तो बस
निर्धारित आचरण के पाबंद हैं
(एक अजन्मी कविता की भूमिका)
(ईमिः24.07.2015)
734
युवा
साथी, शालू 'मिताक्षरा' की घास काटती औरत पर एक
सुंदर कविता पर तुकबंदी में यह कमेंट लिखा गया.
पैनी हो
रही है तुम्हारे लेखनी की धार
लाती रहो
इसमें निखार लगातार
शब्दो से
गढी घास काटती औरत की यह तस्वीर
करती
निराला की पत्थर तोड़ती नायिका सी तकरीर
होगी तेज
जिस दिन धार खुरपे की
बुनियाद
हिल जायेगी शोषण के किले की
बनेगा
उसका पल्लू इंक़िलाबी परचम
जुमलों
की लफ्फाजी हो जायेगी बेदम
होगा तब
खुरपा और कलम का संगम
बनेगा जो
उमड़ती नई धारा का उद्गम
करेगी यह
औरत नाइंसाफी पर निर्णायक वार
साथ होगा
खुरपे के जब कलम का उद्गार
बनेगी जब
इस भावी संगम की पेंटिंग
कम कर
देगी दि'विंची के
मोनालिजा की रेटिग
( तुम्हारी इस रचना ने
तुकबंदी से मेरा सन्यास तुडवा दिया, वैसे भी किसी चीज से स्थायी सन्यास नहीं लेना चाहिये)
(ईमिः 15.08.2015)
735
मिली थी जो आज़ादी बांटकर इतिहास
भूमंडलीकरण में खो गया उसका भी आभास
थोड़ा अलग
हैै पुराने से नया साम्राज्यवाद
लॉर्ड क्लाइव है इसका कॉरपोरेटी राष्ट्रवाद
वैसे भी जरूरत नहीं अब किसी क्लाइव की
मीर जाफर बन गये राष्ट्रवाद के सिपाही
करेगा इंसाफ की बात ग़र भूतपूर्व सैनिक
लाठी-गोली से तोड़ी जाती उनकी सनक
मांगेगा भड़ाना का दलित अगर पुनर्वास
करेगा नहीं राष्ट्रवाद बर्दाश्त ये बकवास
सिखाया था अंग्रेजों ने बांटो राज करो का मंत्र
चारचांद लगा रहा उस पर राष्ट्रवाद का तंत्र
करेगा कश्मीरी या नागा ग़र आज़ादी की बात
होगा घायल मुल्क का राष्ट्रवादी जज्बात
देता है राष्ट्र तब सेना को विशेष अधिकार
मारने को आज़ादीवादी नहीं वारंट की दरकार
कर सकते हैं सैनिक किसी का बलात्कार
होता नहीं विद्रोही का कोई मानवाधिकार
है कोई आतंकवादी यदि असीमानंद
दिलायेगी सरकार उसको जमानत
करेगी तीस्ता ग़र हत्या-बलात्कार
की मुख़ालफ़त
झेलनी ही पड़ेगी उसको सीबीआई की आफ़त
फाड़ता है बजरंगी जब गर्भवती का अंताशय
सलाम करते हैं उसे राष्ट्रवाद के पर्याय महाशय
करती है कत्ल औरत-बच्चे माया कोदनानी
बन जाती है महिला-बाल कल्याण की रानी
महिमा है राष्ट्रवाद की असीम और अपरंपार
महानता की है जिसके नहीं कोई आर-पार
हे जनमनगण अधिनायक भारत भाग्यविधाता
हो गये 68 साल मगर तेरा जादू पकड़ न आता
(ईमिः 15.08.2015)
736
एक अधूरी
कविता
देवराज
इंद्र नहीं पढ़ते इतिहास
नहीं है
उनको नारी प्रज्ञा के प्रवाह की गति का अहसास
कि नहीं
है नारी अब नारद के व्याख्यानों की अहिल्या
आखेट कर
ले जिसका इंद्र सा कोई बहुरूपिया बहेलिया
बनती
नहीं वह किसी मर्दवादी शाप से पत्थर
गौतमों
की जमात को तर्क से करती है निरुत्तर
विवेक से
करती है छल-फरेब तार तार
ज़ुल्फ
के जलवे नहीं कलम होता है हथियार
नहीं
चलाती वंकिम नयनों से छायावादी तीर
शब्दों
से बनाती है धारदार दानिशी शमसीर
ललकारती
है वह आज के देव-देवराजों को
मर्दवाद
के सारे मानिंद सरताजों को
नारी
चेतना का निकला है ये जो कारवाने जुनून
नष्ट करे
देगा पति-परमेश्वरता के दंभ का शुकून
देगी
समाज को समता के सुख की शिक्षा
अधिकार
है आजादी न कि कोई भिक्षा
निकला है
जो नारी चेतना का रथ
रुकेगा
नहीं कठिन कितना भी पथ
सर्जक है
सृष्टि की करेगी हिफाज़त
नहीं
होगी अब खुराफात की इज़ाज़त
जुटाती
ये शक्ति अमन चैन के लिए
शोषण-दमन
को दफ्न करने के लिए
नहीं है
ये किंवदंतियों की बेचारी नारी
बल-बुद्धि-साहस
की है जीवंत पिटारी
वैसे तो
शांति-सौहार्द से इसका स्वभाव लबरेज
मगर ईंट
का जवाब पत्थर से देने में नहीं परहेज
नहीं है
रीतकालीन कवियों की छुई-मुई कोई कल्पना
है ये
अफलातून के गणराज्य की घुड़सवार वीरांगना
नहीं
सुनती मनुवादी पति-परायणी बकवास
उल्टे
देती मर्दवाद को निरंतर सांस्कृतिक संत्रास
(ईमिः 23.08.2015)
737
लाल किले
से बोले वही बातें बंदानवाज
वही
जुमले वही लफ्फाजी वही अंदाज
(ईमिः16.08.2015)
738
नहीं करते आकस्मिक वार कायरों की तरह
करते नहीं छुप कर आघात रामों की तरह
न है कोई दंभ ताकत का न ओहदे का अभिमान
मर-मिटते हम बचाने को कलम का स्वाभिमान
हमले के पहले हम करते हैं ऐलान-ए-ज़ंग-ए-आज़ादी की
मुक्ति चाहते निज का नहीं कायनात की पूरी आबादी की
छिपाके रखते नहीं आस्तीन में बघनख मिलते जब गले
सियासती जंग का रुख कितना भी बेमाफिक हो जाये भले
मकसद हमारा पाक है और साफ दुश्मन की पहचान
करते हैं इसीलिए जंग-ए-आज़ादी का मुखर ऐलान
ऐलान से ही सकते में आ जाता है कारपोरेटी दुश्मन
विचारों से डरकर बौकलाहट में करता विचारकों का हनन
जानता नहीं एक साश्वत सत्य यह कारिंदा-ए-कॉरपोरेट
मरते नहीं विचार उगते हैं धरती पर बन बीज अनेक
लगे ग़र कलम पर बंद दिमाग तालिबानी पहरा
मुल्क पर छाये ग़र ज़हालत का संकट गहरा
बढ़ जाती है ऐसे में लड़ने की जरूरत
बचाना है इतिहास को होने से बदसूरत
हम लड़ेंगे साथी बदलने को हालात
जीतेंगे चलेंगे जब लेकर हाथों में हाथ
हम लड़ेंगे क्योंकि बिना लड़े कुछ नहीं मिलता
हक़ के एक-एक इंच के लिए है लड़ना पड़ता
हम लड़ेंगे अत्याचार के सर्वनाश के लिए
हम लड़ेंगे एक शोषणविहीन समाज के लिए
हम लड़ेॆगे इंसानियत के पैगाम के लिए
हम लड़ेंगे साथी साथियों के साथ के लिए
हम लड़ेंगे
(ईमिः11.09.2015)
739
हमें
लड़ना ही है साथी क्योंकि लड़ने की जरूरतें बढ़ती जा रही हैं
हमें
लड़ना है कलम की आज़ादी के लिए
हमें
लड़ना है पाश की शहादत की हिफ़ाजत के लिए
हमें
लड़ना है कलबुर्गी की विरासत को बढ़ाने के लिए
कलम से
भयभीत कायर कट्टरपंथ को ये बताने के लिए
कि
तोड़ोगे जब भी मेरा कलम और मुखर होगा तुम्हें और डराने के लिए
हमें लड़ना
है न डरकर डर को डराने के लिए
लड़ना ही
है समता के सुख का जश्न मनाने के लिए
(जन्मने की प्रतीक्षासूची
में एक और अजन्मी कविता का इजाफा)
(ईमिः 11.09.2015)
740
फ़िजां
पर सियासत-ए-जहालत का गहन लग गया है यारों
हवाओं पर
हनुमानी तालिबानों का पहरा लग गया है यारों
(ईमिः11.09.2015)