Sunday, February 23, 2014

सियासत

बहुत ही मुश्किल है सियासत का राज-काज
 ठगना पड़ता है इसमें अपना ही मुल्क-समाज
होती नहीं ज्ञान और मशक्कत से आज सियासत
हो न जब तक दादा-नानी की या नागपुरिया विरासत
बेचना पड़ता है ज़मीर टाटा और अंबानी को
एस्सार, वेदांता, एॅनरान और अदानी को
करते बेचारे घाटे में  मुल्क के संसाधनों का सौदा
कौड़ियों में बनाते अरबों की संपत्ति का मसौदा
बनते हैं बेचारे थैलीशाह के ज़रखरीद गुलाम
राष्ट्र-भक्ति के लिए करते हैं ये मुल्क नीलाम
करने को बुलंद सामारिक न्याय का नारा
खाना पड़ता है नेता को पशुओं का चारा
बढ़ाना है मुल्क में विदेशी पूंजी का निवेश
मानना पड़ता बेचारों को वालमार्ट का आदेश
देश का विकास करेंगे हर हाल में वज़ीर-ए-आला
कोयले की दलाली में करना पड़े चाहे मुंह काला
कराने को लोगों को दलितवाद पर यक़ीन
देना पड़ता है सेठ जयप्रकाश को जनता की जमीन
करना पड़ता है तुलसी का नाम बदनाम
हत्या-बलात्कार में लगाना है जो नारा-ए-जैश्रीराम
सियासत नहीं है काम दानिशमंद या दीन-हीनों का
है अभी यह काम पूंजी के ज़रखरीद गुलामों का
कारपोरेटी दलाली को देना होता  है जो अंजाम
करना पड़ता है जड़ से आवाम का काम-तमाम
मिट गये हिटलर हलाकू और सभी ताना शाह
जागृत जनता में होती है ताकत अथाह
जागेगा इस बार जब किसान और मजदूर
हो जायेगा क्षण में ज़र के दलालों का नशा काफूर
जागेगा ही आज नहीं तो कल ये आवाम
सियासतदार तब चिल्लायेंगा हे राम हे राम
मिट जायेगा जब पूंजी का ही वजूद
दल्ले हो जायेंगे खुद-ब-खुद नेस्त-नाबूद
तब आयेगा आवाम का असली जनवाद
गूंजेंगे दुनिया भर में नारा-ए-इंक़िलाब
इंक़िलाब जिंदाबाद ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद
(ईमिः 23.02.2014)

No comments:

Post a Comment