Sunday, February 2, 2014

हों जज़्बे मजबूत तो क्या नहीं कर सकता इन्सान

मत बहाओ अश्क इस बात पर कि बेखुद है खुदा
करो पकड़ मजबूत पतवार पर होने न पाये वो ज़ुदा 
उतारा है जब कश्ती मंझधारों में करो खुद पर भरोसा
खुदा एक दिमागी फितूर है छोड़ो उसकी आशा 
कांटों पर  चलकर आये हो नहीं हुए निराश 
दर-दर की ठोकरों को भटकने न दिया पास 
नभ में चमक रही थी चपला फिर भी तू तनिक न बिचला
ओलों की बूंदाबादी में उदधि थहाने था जब निकला 
कर जाओगे पार मंझधार  बनाए रखो हिम्मत 
करो इरादों को बुलंद गैरजरूरी हो जायेगी रहमत
दिखाओ अदम्य साहस सहम जायेगा तूफान
हों जज़्बे मजबूत तो क्या नहीं कर सकता इन्सान 
[ईमि/02.02.2014]

1 comment: