अजातशत्रु की पित्रिहंता संस्कृति का वाहक मोदी टाटा और अंबानी का ही नहीं ओबामा का भी ज़र-खरीद दलाल है अपने मानस पिताओं बाजपेयियों और अडवानियों की ही तरह.
आपकी भाषा की तमीज और मोदियापन खुद-ब-खुद जहालत का नमूना है.
संघियों का सम्मान घोर अपमान है विवेकविहीन जाहिलों से भाषा की तमीज या सम्मान की संस्कृति की उम्मीद रेगिस्तान में मोती की तलाश है.
कुत्तों के भौंकने से कारवानेज़ुनून नहीं रुकता. मोदी जैसे जाहिल फेकू और उसके बेज़मीर, बद्दिमाग चमचे अपना भविष्य सोचें जब मानवता के विरुद्ध उनके एक एक गुनाहों की सजा जनता दौड़ा दौड़ाकर देगी. वैसे तो छींके बिल्ली के भाग्य से टूटते हैं लेकिन कहीं कुत्ते के ही भाग्य से टूट गये, बटेर तो आंख के अंधों के हाथ लगती है लेकिन अगर दिमाग के अंधों के हाथ ही लग गयी, लेकिन हिटलरशाही को को झेलने और उसे नेस्त-नाबूद कर देने वाले आवाम के लिए मोदी जैसे उसके मानसपुत्र और मिनी संस्करण किस खेत की मूली हैं? हिटलर को बंकर में खुदकशी करनी पड़ी थी, देखो य़ह कहां करता है? थोड़ा हास्य करते हैं तो यदि आपके पास दिमाग है और उसके इस्तेमा ल की झेझट कर सकते हैं तो हत्या बलात्कार के इस शातिर नायक का एक गुण बतायें जिससे यह आपका भगवान बन गया?
ये तथाकथित धर्मात्मा ही तो फासीवादी सोच के पुरोधा होता है. नस्ल/धर्म फासीवाद का आजमाया हुआ औजार है.एक विचारधारा है जो कहीं भी हो सकती है. यह एक प्रवृत्ति है जाओ बजरंगी लम्पटों के हुडदंग में साफ़ दिखती है और मोदियापा से ग्रस्त पढ़े-लिखे मूर्खों के कुतर्कों में परिलक्षित होती है, इतिहासबोध से वंचित नफ़रत की फसल बोने वाले "साहब" की बात ही छोडिये. .
युगचेतना के असर में लोग विवेक के इस्तेमाल से बचते हुए पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों से मुक्त नहीं हो पाते और अपने को वर्ग चेतना से वंचित कर कुतर्क करते हैं, इनकी भी मे में है. निराश नहीं हूं जनपक्षीय जनचेतना का उभार अवश्यंभावी है. इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता मोदियापा इतिहास को पीछे ले जाने की नाकाम साज़िश है, फिलहाल हर अमनपसंद नागरिक का कर्तव्य है कि जनसाधारण को इतिहास के विरुद्ध मोदी-टाटा-- ... की शह पर हो रही इस घिनौनी साज़िश से वाक़िफ करें. यह पब्लिक है सब जान जायेगी.
आपकी भाषा की तमीज और मोदियापन खुद-ब-खुद जहालत का नमूना है.
संघियों का सम्मान घोर अपमान है विवेकविहीन जाहिलों से भाषा की तमीज या सम्मान की संस्कृति की उम्मीद रेगिस्तान में मोती की तलाश है.
कुत्तों के भौंकने से कारवानेज़ुनून नहीं रुकता. मोदी जैसे जाहिल फेकू और उसके बेज़मीर, बद्दिमाग चमचे अपना भविष्य सोचें जब मानवता के विरुद्ध उनके एक एक गुनाहों की सजा जनता दौड़ा दौड़ाकर देगी. वैसे तो छींके बिल्ली के भाग्य से टूटते हैं लेकिन कहीं कुत्ते के ही भाग्य से टूट गये, बटेर तो आंख के अंधों के हाथ लगती है लेकिन अगर दिमाग के अंधों के हाथ ही लग गयी, लेकिन हिटलरशाही को को झेलने और उसे नेस्त-नाबूद कर देने वाले आवाम के लिए मोदी जैसे उसके मानसपुत्र और मिनी संस्करण किस खेत की मूली हैं? हिटलर को बंकर में खुदकशी करनी पड़ी थी, देखो य़ह कहां करता है? थोड़ा हास्य करते हैं तो यदि आपके पास दिमाग है और उसके इस्तेमा ल की झेझट कर सकते हैं तो हत्या बलात्कार के इस शातिर नायक का एक गुण बतायें जिससे यह आपका भगवान बन गया?
ये तथाकथित धर्मात्मा ही तो फासीवादी सोच के पुरोधा होता है. नस्ल/धर्म फासीवाद का आजमाया हुआ औजार है.एक विचारधारा है जो कहीं भी हो सकती है. यह एक प्रवृत्ति है जाओ बजरंगी लम्पटों के हुडदंग में साफ़ दिखती है और मोदियापा से ग्रस्त पढ़े-लिखे मूर्खों के कुतर्कों में परिलक्षित होती है, इतिहासबोध से वंचित नफ़रत की फसल बोने वाले "साहब" की बात ही छोडिये. .
युगचेतना के असर में लोग विवेक के इस्तेमाल से बचते हुए पूर्वाग्रहों-दुराग्रहों से मुक्त नहीं हो पाते और अपने को वर्ग चेतना से वंचित कर कुतर्क करते हैं, इनकी भी मे में है. निराश नहीं हूं जनपक्षीय जनचेतना का उभार अवश्यंभावी है. इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता मोदियापा इतिहास को पीछे ले जाने की नाकाम साज़िश है, फिलहाल हर अमनपसंद नागरिक का कर्तव्य है कि जनसाधारण को इतिहास के विरुद्ध मोदी-टाटा-- ... की शह पर हो रही इस घिनौनी साज़िश से वाक़िफ करें. यह पब्लिक है सब जान जायेगी.
No comments:
Post a Comment