361
बवफा-बेवफा से परे ज़िंदगी एक बेशकीमती
कुदरती इनायत है
वफाई-बेवफाई का बात, आत्मरत इंसानों की
बनावटी रवायत है
वफादारी है कुत्तों की प्रवृत्ति, विवेकविहीन, भावुक अंतर्ज्ञान की
जीना है ग़र सार्थक ज़िंदगी,
लिखना
पड़ेगा अफ्साना हक़ीकत के संज्ञान की
होती नहीं बेवफा ज़िंदगी, है ये फसाना किसी नादान इंसान की
362
तुम्हें नग्मा कहूं कि ग़ज़ल या फिर ताजी नज़्मों की फसल
हो तुम तो मेरे लिए एक पहेली मेरी गज़लों की नायाब सगल
363
मुझे बचपन से ही भाती है ताजी कली
इसीलिए लगती हो तुम मुझे इतनी भली
आवारा हूं जन्मजात भौरों की तरह
खींचती कलियां हैं मुझे चुम्बक की तरह
मिलीं हैं अतीत में कई कलियां उदार
अब तो समझती हैं वे मुझे एक वृद्ध भ्रमर
मनमानी तो मैं कभी करता नहीं
364
करो पैदा आजादी
का जज्बा, तोड़ दो हर तरह का कब्जा
कब्जे और
मिल्कियत की बात, नहीं है कोई कुदरती ज़ज्बात
पुरुष को समर्पण
स्त्री सर्वस्व का, है नतीजा मर्दवादी वर्चस्व का
वर्चस्व के
रिश्ते में होता शक्ति का गुमान, पारस्परिक समता में मिलता सुख महान
मासूम हूं समझता
नहीं कब्जे की बात, जनतांत्रिक रिश्तों में होती दिलों की मुलाकात
(ईमिः01.02.2014)
365
वह शाम थी हमारी
आखिरी मुलाकात की शाम
उसके बाद मिले
तो देने को आखिरी लाल सलाम
खो गया किन
बादलों में जगमगाता खुर्शीद
छोड़ गया पीछे
अनगिनत बिलखते मुरीद
क़ातिल की
बेचैनी का सबब है अब नाम उसका
फिरकापरस्ती से
फैसलाकुन जंग का पैगाम उसका
जाने को तो
जायेंगे हम सभी एक-न-एक दिन
कलम रहेगा सदा
ही आबाद उसका लेकिन
काश! वह कुछ दिन
और न छोड़ता यह दुनिया
और भी समृद्ध
होती इंकिलाबी इल्म की दुनिया
अमन-ओ-चैन का था
वह एक ज़ुनूनी रहबर
यादों के अनंत
कारवां में खो गये जनाब गब्बर
[ईमि/01.02.2014]
366
उठो मेरी
बेटियों, करो बुलंद नारे नारीवाद के
तोड़ो खूनी पंजे
मर्दवाद के
ये रातें हैं, ये सड़कें हैं आपकी, नहीं बलात्कारी के
बाप की
छोड़ो मत निडर
घूमने की बात, भयमुक्त कर दो दिन और रात
सहो मत प्रतिकार
करो, मर्दवाद के दुर्ग पर लगातार प्रहार करो
विचरण करो
सड़कों पर होकर निडर, भाग जायेंगे कायर दरिंदे भय खाकर
(ईमिः01.02.2014)
367
मत बहाओ अश्क इस
बात पर कि बेखुद है खुदा
करो पकड़ मजबूत
पतवार पर होने न पाये वो ज़ुदा
उतारा है जब
कश्ती मंझधारों में करो खुद पर भरोसा
खुदा एक दिमागी
फितूर है छोड़ो उसकी आशा
कांटों पर चलकर आये हो
नहीं हुए निराश
दर-दर की ठोकरों
को भटकने न दिया पास
नभ में चमक रही
थी चपला फिर भी तू तनिक न बिचला
ओलों की
बूंदाबादी में उदधि थहाने था जब निकला
कर जाओगे पार
मंझधार बनाए रखो हिम्मत
करो इरादों को
बुलंद गैरजरूरी हो जायेगी रहमत
दिखाओ अदम्य
साहस सहम जायेगा तूफान
हों जज़्बे
मजबूत तो क्या नहीं कर सकता इन्सान
[ईमि/02.02.2014]
368
बनाओ नया मकान
इन खंडहरों पर
पुराने को तो
गायब होना ही था
(ईमिः03.02.2014)
369
होता है मुश्किल
दो वक़्त का गुजारा
हड़प लेता है
थैलीशाह माल हमारा सारा
काफी है धरती पर
जरूरतों के लिए सभी के
नाकाफी है मगर
सब लालच के लिए किसीके
बदलने ही होंगे
लूट वो नाइंसाफी के हालात
कोई करे फाका और
कोई करे अन्न बर्बाद
इन खंडहरों पर
तो बनाने ही हैं नये मकान
करना पडडेगा
अन्याय से भीषण घमासान
जीतेंगे ही हम
क्योंकि हमारे इरादे हैं साफ
चाहते हैं
दिलाना मानवता को इंसाफ
(ईमिः03.02.2014)
370
पिछड़ गये हैं
चूहा दौड़ मे जो आज
बनायेंगे एक दिन
एक नया समाज
बदलेंगे सरमाये
का राज-काज
लायेंगे किसान
मजदूर का राज
जरूरी शर्त है
मगर उसके आगे
पहले ज़मीर और
आवाम जागे
करना पड़ेगा
जनवादी चेतना का प्रसार
तोड़नने पड़ेंगे
पुरातन दकियानूसी विचार
(ईमिः03.02.2014)
वाह बहुत सुंदर !
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