Friday, February 28, 2014

साहब के कुत्ते

एक पुरानी कविता का संपादित संस्करणः

साहब के कुत्ते
साहब के कुत्ते होते हैं साहब से भी ज्यादा खतऱनाक
भौंकते रहते हैं हर आने जाने वाले पर बेबात
चाटते हैं तलवे साहव-ओ- कारिंदों के हो बिल्कुल बेबाक
 अपनी भी जमात की पीठ में घोंपते हैं छुरा
साहब को कह दे जो सपने में भी बुरा
दौड़ते हैं काटने साहब के एक  इशारे पर
 हो जाते हैं नौ-दो-ग्यारह पत्थर उठाने पर
होते हैं उल्लसित हैवानियत की जीत में
ढ़ूंढ़ते गौरव किसी कल्पित अतीत में
ऐंठ जाते हैं पाते ही आश्रय कुर्सी का
दुम हिलाकर बैठ जाते हैं दिखते ही   टुकड़ा हड्डी का
रथ के नीचे चलते हुए सोचते रथ के यही हैं सारथी
अनुशासन के ज़ीरो पावर बल्ब के यही हैं महारथी
काम है इनका करना आवाम की चौकसी
करते हैं मगर ये तो बस साहब की चाकरी
प्यार-पुचकार में भी इनकी होता है 14 इंजक्शनों का डर
होता जो उसमें विवेकहीन वफादारी का जहर
इतिहास है इस बात का चश्मदीद गवाह
साहब के कुत्ते होते हैं साहब से भी ज्यादा खतऱनाक
[ईमि/01.03..2014]

3 comments:

  1. हर तानाशाह अपना सफर इतिहास के साथ बलात्कार से शुरू करता है. इतिहास गवाह है. इतिहास बोध से वंचित होने के कारण तानाशाह अपने पूर्वजों की दर्दनाक अंत की कहानियां नहीं पढ़ना-जानना चाहता और यह भी नहीं कि इतिहास के साथ उसके इस अपराध की सजा फसके नाम पर थूक कर आने वाली पीढ़ी-दर- पीढ़ी देती रहती है. वह तो ताकत के नशे में उन्मत्त रहता है. भक्ति-भाव की अफीम में धुत्त, उसके विवेकहीन भक्त (ज्यातर पढ़े-लिखे, विवेकहीन इसलिए कि वे विवेक इस्तेमाल करके य़ह जानने की कोशिस नहीं करते कि किस गुण से वह उनका भगवान बन गया) भी पढ़ने-जानने की कोशिस नहीं करते कि इतिहास तानाशाहों के भक्तों के साथ कैसा सलूक करता है.

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