Sunday, February 23, 2014

ल्ला पुराण 133 (संघ-विमर्श)

RSS  का वज़ूद ही मुस्लिम-विरोधी उंमादों पर टिका है. गोलवलकर हिटलर का मानस-पुत्र और राष्ट्रीय आंदोलन का दुशमन था. उसके बंच ऑफ थॉट या वि ऐंड ऑवर नेसन डिफाइंड से एक वाक्य उद्धृत करें जिससे वह युगद्रष्टा साबित हो. संघी अमूर्त उंमादों के आधार पर जनता की धार्मिक संवेदनाओं और अंधविश्वासों का शोषण करके कागपोरेट दलाली करते हैं. गोलवल्कर अंग्रेजों का पिट्ठू और मुल्क का गद्दार था.

संघ एक देशद्रोही संगठन है जिसने मुक्ति-संग्राम से गद्दारी करते हुए नवजवानों को हिंदुराष्ट्र के नाम पर बरगलाकर नफरत की गंदी राजनीति शुरु किया जिसके रणबाकुरे हत्या-लूट-बलात्कार को राष्ट्र-भक्ति मानते हैं. मैं भी नफरत और जहालत के उस सड़ांध में कुछ दिन रहा. संघ के प्रशिक्षण का उद्देश्य तो तो बंद-दिमाग तोते और भेंड़ों की जमात खड़ा करने का है लेकिन चुछ लोग जो दिमाग को इस्तेमाल करते हैं तो ज़हालत के गड्ढे से निकल जाते हैं. ज्यादातर पूरी तरह नहीं निकल पाते.

अशोक सिंघल जैसे धर्मोंमाद के सौदागर चाहते हैं कि अशिक्षित-गराबों की ही तरह शिक्षित मध्यवर्गीय हिंदू में भी इफरात में बच्चे पैदा कर लें और ज़िंदगी बच्चों को अभावों में किसी तरह पालने-पढ़ाने में खपा दे और अल्ममत में हो जाने की असुरक्षा का भय दिखाकर सिंघल-तोगड़िया-मोदी जैसी तिकड़मबाज तिकड़ियां मुल्क को कारपोरेटों को बेचने का काम निर्बिघ्न करते रहें.

सारी महानताएं अतीत में खोजना, सारी समस्यां का हल अताात में खोजने की हिमायत अनैतिहासिक तो है ही क्योंकि इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर नहीं होता और हर अगली पीढ़ी पीढ़ी तेजतर हाती है, वह पिछली पीढ़ियों की उपलब्धियों को सहेती है और नये निर्मम करती है, यह प्रतयक्ष-प्ररोक्ष रूप से र्तमान की बेहूदगियों का अनुमोदन और भविष्य के साथ साजिश भी है.

पं.दिनेश पामडेय जी, सही संघी संस्कार हैं आपके, मैं तो जिसकी औलाद हूं वह अब नहीं रहे आपके संसकार और समाजीकरण आपकी भाषा की तमीज़ में स्पष्ट हैं. संघ ने मेरा नहीं मुल्क और मानवता को प्रदूषित किया है. आप कहां पैदा हो गये इसमें आपका कोई योगदान नहीं है इसलिए न उसमें गर्व करने की बात है न शर्म. दुर्भाग्य से लगता है आपको शिक्षक भी जाहिल ही मिले की आप और सारे संघी जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घटना की अस्मिता से न उबर कर पढ़े-लिखे ज़ाहिल बने रहते हैं.

आपकी भी भाषा आपके समुचित संघी संसकार चश्मदीद गवाह हैं.  संघी तो पढ़ते ही नहीं तो उनसे पढ़ने-लिखने की बात करना भैंस के आगे बीन बजाना है. अन्यथा बताएं गोल्वलकर ले बंच ऑफ थॉट में मनु के बारे में क्या लिखा है, मैंने वह भी पढ़ा है. हिटलर की भक्ति और उत्तरी-ध्रुव को बिहार-उड़ीसा में उसके भूवैज्ञानिक कुज्ञान की वि ऑर आवर नेसन डिफाइन्ड भी पढ़ा है . दीनदयाल का समग्र (अ)मानवतावाद भी पढ़ा है.

, पढ़े-लिखे तो आप हैं, मैं सिर्फ पागल. Thank you for the complement. वैसे संघी  जब मेरी बातों से बौखलाकर गाली-गलौच करते हैं यानि अपने संसकारों की भाषा में बात करते हैं और अपनी जहालत की नुमाइश करते हैं तो  बहुत अच्छे लगते  हैं.

नमो-नमो स्वाहा. मोदी की जगह जेल है. कुछ लोग लाटरी निकलने पर पगलाते हैं कुछ डिकट खरीदते ही उम्मीद में पगला जाते हैं. मोदियाये जाहिलों की हाल बाद वाली है. जाहिल इसलिए कि वे बस मोदी भक्त हैं जानते नहीं क्यों. आप जानते हों तो बता दें हत्या-बलातकार के इस फासीवादी आयोजक की एक बात जिससे वह आपका भगवान बन गयो, या भागवत ने आदेश दे दिया इस लिए. दिमाग के इस्तेमाल से ही मनुष्य जानवरों से भिन्न है, जो नहीं करते......

दैनिक जागरण दंगों में अफवाहें फैलाने का काम करता रहा है. बाबरी विध्वंस के समय विहिप के मुखपत्र बन गया था बदले में भाजपा ने इसके मालिक नरेंद्र मोहन को राज्य सभा की सदस्यता से नवाजा. आप से बौखलाए मोदी भक्त मुसलमानों के साथ आप पर हमला बोलने लगे हैं. पांडेय जी की वाल पर शामली और मुजफ्फरनगर में मोदी-मुलायम की मिली-जुला साजिश से हुई अल्पसंख्यकों की हत्याों-सामूहिक बलात्कार-आगजनी लूटपाट और जबरन विस्थापन पर या हत्यारों-बलात्कारियों की निंदा पर कभी कोई सरोकार नहीं दिखा. दुहरापन संघी संस्कृति का अभिन्न अंग है.  

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