सुख और मुगालता
ईश मिश्र
इबादत और मोहब्बत में है छत्तीस का विरोधाभास
इधर खुदाई का गुमां है उधर पारस्परिकता का आभास
मान लेता है इंसानी मोहब्बत को जो रूहानी इबादत
झेलता है तह-ए-उम्र वर्चस्व और गर्दिश-ए- इश्क की सांसत
इसी लिये ऐ आशिक-दिल इंसानों सीखो मुहब्बत का मूल-मन्त्र
बुनियाद हो संबंधों का समताबोध और पारस्परिक जनतंत्र
होंगे अगर रिश्ते भगवान और भक्त के खानों में विभक्त
न होगा सुखी भगवान न ही होगा संतुष्ट अभागा भक्त
सुख का सार है पारदर्शी, रिश्ते की जनतांत्रिक पारस्परिकता
शक्ति-समीकरण के संबंधों में होता है सिर्फ सुख का मुगालता
[ ईमि/०१.०२.२०१३]
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