Tuesday, February 5, 2013

जीववैज्ञानिक दुर्घटना


उठ नहीं पाते जो जीववैज्ञानिक दुर्घटना की पहचान से
करते हैं इज़हार-ए-जहालत अपनी  वहम-ओ-गुमान से
करते हैं वे अपमान तहजीब-ए-सलीका-ए- इंशानियत का
कहते कौमी ईमान और खेलते खेल बर्बर हैवानियत का
नास्तिक हैं हम डरते नहीं किसी भी भूत और भगवान से
डरेंगे क्यों हम अवाम के दुश्मन फिरकापरस्त हैवान से
खुद्दारी ऐसी कि बुलंद हैं इरादे परे इस आसमान से
यकीं खुद पर तो मांगे क्यों दुआ किसी राम-रहमान से
[ईमि/०५.०२.२०१३]

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