Ashutosh Srivastava and Shriniwas Rai Shankar आप लोगों की चीन-युद्ध और इस्लाम के तुलनात्मक अध्ययन कला श्रोत क्या है? बिना भूमिका भी पढ़े पुस्तक की फतावानुमा समीक्षा हमारी मुल्क में स्थापित परम्परा है, आप लोग उसे ही आगे बढ़ा रहे हैं? युद्धोन्मादी देश-भक्ति हर तरह के दुष्टों/हरामखोरों/लुटेरे-कमीनों की शरणस्थली रही है. अपने दिमागों में भरे जहालत के कूड़े को बाहर निकालें तभी उसमे कुछ ट्रक घुस पायेंगे. भारत-चीन युद्ध के दस्तावेज राष्ट्रीय अभिलेखागार, जनपथ, नेरे दिल्ली में उपलब्ध हैं थोड़ा कष्ट करें तो हकीकत मालुम हो जायेगी. हम मार्क्सवादी, क्रांतिकारी जन-युद्धों के अलावा सभी युद्धों की मुखालफत करते हैं. चीन का नेतृत्व लगातार आग्रह कर रहा था कि सीमा पर सेना का जमावडा नहीं होना चाहिए वरना वे भी जवाबी कार्रवाई करेंगें. लेकिन कृष्णामेनन के सर पर केनेडी और ब्रज्नेव दोनों का वरदहस्त था, वे नहीं माने. चीनी जनसेना ने अपने ही शासकों की सेना/पुलिस को १२ साल पहले ही धुल चाताक्लर क्रांतिकारी सत्ता की स्थापना की थी, और हमारी सेना अंग्रेजों द्वारा हिंदुस्तानियों पर हुकूमत वके लिए बनाई गयी भाड़े की सेना थी जो १५ साल पहले तक अंग्रेज मालिकों के आदेश पर हिन्दुस्तानी आवाम पर कहर बरपाती थी. अंग्रेजों द्वारा कहदी बादे की सेना जन-सेना के सामने नहीं टिक सकती थी. दुनिया के युद्धों के इतिहास शायद यह एकमात्र उदाहरण होगा जब विजयी सेना एक तरफा युद्ध-विराम घोषित करके भागती विपक्षी सेना को कहे कि भागो मत और छिपे और पड़े घायलों का इलाज़ करे क्योंकि अंग्रेंजों द्वारा बनाई हिन्दुस्तानी सेना के पास स्ववास्थ्य-शिविर लगभग नदारत थे.ये बातें आपको रासह्त्रीय अभिलेखागार्ट के दस्तावेजों में मिल जायेंगी क्योंकि ३० साल से अधिक पुराने गोपनीय दस्तावेज उपलब्ध होते हैं. इसी अभिलेखागार में १९४२ में सार्वरकर द्वारा "भारत छोडो आंदोलन" केर विरुद्ध अंग्रेजों के लिओये सैनिक भर्ती के और अटल बिहारी वाजपाई द्वारा क्रांतिकारियों की मुखबिरी के भी दस्तावेज उपलब्ध हैं. मैं तो चीन-युद्ध के समय ५ साल का बालक था. आग्रह सिर्फ इतना है कि तथ्यों-तर्कों के आधार पर बात रखें, दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों के आधार पर नहीं.
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