Tuesday, February 5, 2013

प्रगाश के नाम


क्या सोच कर तुम मेरा कलम तोड़ रहे हो,
इस तरह तो कुछ और निखर जायेगी आवाज़
मौजूदा  मौन को मेरी शिकस्त न समझो
फिर उट्ठेगी, हिंदुकुश पार कर जायेगी आवाज
हमारी दावेदारी का यह साज़ चुप है टूटा नहीं
मुफ्तियों की मौत का पैगाम बन जायेगी आवाज़
आगाज ने ही कर दी हराम नीद खुदा के खिद्मद्गारों की
फतवों के ज़ुल्म से अब न दब सकेगी ये आवाज 
 बाज आओ फतवेबाजी की जहालत से
दबाओगे तो और भी बुलंद होगी आवाज़ 
[ईमि/०६.०२.२०१३]

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