Sunday, February 10, 2013

लल्ला पुराण ६५

परिस्थिति-जन्य खतरों को हम विषम परिस्थिति कहते हैं. ऐसी स्थिति में 'पैनिक' करने से स्थिति और भी विषम हो जाती है और इंसान किम्कर्तव्य-विमूढ़ हो जाता है. घबराहट पर काबू पाकर दिमाग को मुक्त छोड़ दीजिए निजात पाने/निपटने के उपायों पर सोचना चाहिए, यदि कुछ भी न कर सकने की स्थिति आ ही जाए(मानव क्षमता अपार है, किन्तु सीमाओं के साथ) तो परिस्थितियों पर छोड़ दें. सांप का डर की बात पर एक वास्तविक अनुभव याद आ गया. १९८१-८३ की कभी की बात है. में दिल्ली में किसी से मिलने जा रहा था. सड़क और कालोनी के बीच ८-१० फीट चौड़ा फूलों का बगीचा था. शार्ट-कट के चक्कर में बगीचे में से चल रहा था. तभी मुझसे नब्बे अंश की दिशा में तेजी से चलता साँप जूते से नगण्य दूरी पर दिखा. जीव विज्ञान का ज्ञान शून्य होने के नाते कह नहीं सकता कि वह साँप विषैला रहा होगा कि नहीं.कोई भी जीव (सभ्य इंसान को छोड़कर) अनायास हमला नहीं करता. में सांस रोककर जड़वत खड़ा हो गया. और मेरे दांयें पाँव के जूते से होकर जब उसकी पूरी काया गुजर गयी, तन जान में जान आयी. बदनामी का डर की सोचे तो इंसान कोई नया काम करे ही नहीं क्योंकि नए विचारों के प्रति समकालीन लोकमत, दुर्भाग्य से, प्रायः असहनशील होता है, उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए क्योंकि वे अपने समय से आगे की चेतना के पूर्वाभास हैं. लोक-मत की चिंता करता तो आप लोग जानते हैं आभासी दुनिया के कुटुम्बों में वह न कहता जिसके चलते असहज स्थितिया पैदा हुईं. क्या हो गया? मुझे तो लगता है कि इलाहाबाद के आभासी मित्रों से मुझे पात्रता से अधिक सम्मान मिल रहा है. बिल्ली के गले में घंटी बंधना है, तो आप क्यों नहीं. हाँ अपने कदम के औचित्य के बारे में आपको आश्वस्त होना पडेगा.

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