कोलाहलपूर्ण सुकून
ईश मिश्र
हमारी सोहबत में इतना कोलाहलपूर्ण सुकून था
कि खलती रही है कमी एक दूजे की छूटा जब से साथ
लेकिन सच है, निर्वात नहीं
रहता
पहले हम साथ थे अब मधुर यादें हैं पास
अच्छे तो लगे और भी लोग
तुम्हारी अच्छाई थी कुछ खास
अलग-अलग खास होती है हर अच्छाई
[ईमि/०८.०२.२०१३]
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