Alok Singh मजबूरी बेईमानी का बहाना होता है. आईआईटी और एम्स के स्नातकों के प्रशासनिक सेवा में प्रवेश को प्रतिबंधित किया जाना चाहिए. भौतिकी, रसायन शास्त्र और गणित के कोचिंग ज्ञान में लोक-पाशासन का ज्ञान अन्तर्निहित नहीं होता. इन संस्थाओं के एक एक छात्र पर आम जनता के खून-पसीने की कमाई के लाखों रूपये खास किस्म की दक्षता के लिए खर्च होता है. मैंने कुटुंब छोड़ने के पहले वहाँ एक पोस्ट में जिक्र किया था कि विज्ञान/अभियांत्रिकी के विद्यार्थी अपोनी सामाजिक सोच में निरा अवैज्ञानिक होते हैं क्योंकि वे विषय की मशीनी समझ हासिल करते हैं सामाजिक नैतिकता की नहीं.इस लिए आईआईटी का स्नातक होना न् तो दक्षता की गारंटी है न् ईमानदारी की. वैसे पूरी की पूरी नौकरशाही ही सामान्यतया सामाजिक ज्ञान के सन्दर्भ लगभग अशिक्षित ही रह जाते हैं. प्रतियोगी परिक्षा के पहले वे कोचिंग के नोट्स रटते हैं और चयनित होने के बाद दहेज से शुरू करके संवैधानिक कर्तव्यों को दरकिनार कर अपने राजनैतिक आकाओं के साथ मिलकर देश लूटने में मशगूल हो जाते हैं पढने-लिखने या जनहित में चिंतन का उनके पास समय नहीं होता. और अपवाद नियमों कीपुष्टि ही करते हैं.
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