Heramb Chaturvedi आप से बिलकुल सहमत हूँ. कई सामंती शासक इतने दमनकारी और असहिष्णु नहीं थे जितने आज के कई "जनतांत्रिक" शासन. उनके पास उतनी बड़ी सेनाएं और इतने मारक हथियार नहीं होते थे.औरंगजेब के बारे में तो कहा जाता है की वह सरकारी कोष से ऐय्याशी करने की बजाय आजीविका श्रम से कमाता था. जैसा पंकज ने ज़िक्र किया है की शासन पर अधिकार के लिए पितृहन्ता/भात्रिहंता/पुत्र-हंता शासकों की बातें इतोइहास में असामान्य नहीं हैं. अजात-शत्रु से लेकर औरन्जेब तक. उसने तो बाप को क़त्ल नहीं कैद किया था. VOICE OF Resistance के लेख में ज़िक्र कलिया है, पूंजीवाद और उसका राजनैतिक अस्त्र तथाकथित जनतंत्र दोगली व्यवस्था है. यह जो करता है कभी नहीं कहता और जो कहता है कभी नहीं करता. उतना ही विरोध बर्दाश्त करता है जितने से इसे फर्क नहीं पड़ता. यह स्वर्ग के सपने दिखाकर धरती लूटता है. लेकिन इतिहास की गाड़ी में बोक गीयर नहीं होता, अगला पड़ाव अब समाजवाद ही होगा जिसमें शोषण-दमन की रवायतें दफन कर दी जायेंगी.
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