Wednesday, October 17, 2012

लल्ला पुराण ५०

इस ब्लॉग में यह इलाहाबाद के मंचों(खासकर लल्ला चौराहे) पर कमेंट्स का अर्धशतक है.

राजू जी आपका प्रश्न बिलकुल लाजमी लेकिन इस पोस्ट की धारा से थोड़ा बेमेल. यह एक स्वंत्र विमर्श का विषय है. अंग्रेज साम्राज्यवादियों की अंतर-साम्राज्यवादी यद्ध में मारे गए भाड़े के सिपाहियों की याद में औपनिवेशिक शासकों द्वारा बनाया ज्ञा इंडिया गेट  को ध्वस्त करके उसकी जगह क्रांतिकारी शहीदों को स्मारक बनाने की बजाय उसे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का स्मारक क्यों बना दिया गया? क्योंकि सत्ता बदली, निजाम नहीं. औपनिवेशिक साम्राज्यवाद की जगह आर्थिक साम्राज्यवाद ने ले लिया जो अब भूमंडलीकरण के जमाने में अपने चरम पर है. बिलकुल सहमत हूँ कि सीनियर नेहरू की बीबी या जूनियर नेहरू की मान के नाम पर क्यों स्मारक होना चाहिए? सोनिया गांधी को क्यों डी-फैक्टो शासक होना चाहिए? बापों के मारने के बाद बेटे/बेटियों को क्यों उत्तराधिकार मिलना चाहिए? सोन्या गंदी की दामाद की संपत्ति क्यों सैकड़ों गुना बढ़ना चाहिए? क्यों उसे हवाई अड्डों पर वे सुबिधायें मिलनी चाहिए जो सिर्फ प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति आदि को मिलाती हैं? बीजू पटनायक के लगभग विदेशी बेटे को क्यों उड़ीसा की बागडोर मिलनी चाहिए जो उसके संसाधनों को बाप की जागीर समझ कर सेवा-शुल्क लेकर देशी-विदेशी कारपोरेटों को बेच दे? ये सार्टक सवाल हैं लेकिन इस पोस्ट का प्रकांतर से आशय यह है कि मुसलमान शासकों के नाम पर क्यों हैं?

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