मेरे पिताजी परम्परागत --संस्कृत(पाठशाला) और फारसी (मदरसा) -- शिक्षा प्रणाली और आधुनिक शिक्षा के संक्रमण-कालीन पीढ़ी के थे. मेरे परदादा लोग बताते थे कि संस्कृत, फारसी और आयुर्वेद के क्षेत्र में प्रतिष्ठित विद्वान थे. साक्षरता और संकरित के मन्त्रों/श्लोकों की स्मृति और फारसी के शब्द विरासत में मिले. पूजा करते समय सरस्वती वन्दना से लेकत शिवस्त्रोत तक जितने भी मन्त्र/श्लोक जानते थे सब पढ़ जाते थे, हमारी कभी यह पूंछने की हिम्मत नहीं हुई कि सबके अर्थ भी समझते थे कि नहीं. उन्हें लगतारहा होगा कि वे खुद भले ही उन मंत्रो को न समझ रहे हों लेकिन उनके जाप से सारे सम्बंधित देवी-देवता उन्हें सुन्-समझकर खुश रहेंगे.
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