Sunday, October 21, 2012

दलित विमर्श ३

कुंवर सिंह पर भट्टाचार्य के विचारों पर मैंने कहाँ चुप्पी साढ़े है फिर से पढ़िए. मैंने आपको जातिवादी नहीं कहा, सवर्ण जातीय चेतना जातिवाद को मजबूत करने की है दलित चेतना इसे तोड़ने की. मैंने यह नहीं कहा कि और प्रदेशों से मायावती का शासन खराब था मैंने यह कहा कि मायावती को कुछ ऐतिहासिक परिवर्तन का मौक़ा मिला और उन्होंने गँवा दिया औरों के ही ढर्रे  पर चलकर. जन्म की अस्मिता छिपा लेने से अगर कोई जातिवाद से उबार जाता है तो चंद्र शेखर और जगन्नाथ जातिवादी नहीं होते. यहे सवाल एक मनुवादी ने भी पूंछा था " आप वर्णाश्रम को देश की दुर्दशा के लिये जिम्मेदार मानते हैं तो मिश्र क्यों लिखते हैं? इसीलिये मैंने कहा आप और मनुवादियों में यही समानता है. हल्के-फुल्के ढंग से कहें तो यह बताने के लिये कि इस मुल्क को सदियों तक अधोगति और जड़ता प्रदान करने वालों में मेरे पुर्वज भी शामिल हैं, मेरा एक घनिष्ठ मित्र और सहकर्मी है रतनलाल वह मुझे "पंडित जी" के संबोधन की गाली देता है, और कोई पंडित जी कहता है तो वह उससे भिड़ जाता है कि यह गाली देने का हक़ सिर्फ उसे है. आप थोड़ा जान लें मेरे बारे में और फिर गाली दें. आप की बात सही है कि मेरे पास दलित पीड़ा का भोगा हुआ यथार्थ नहीं है और न ही नारी पीड़ा का तो क्या इसके उन्मूलन में भागीदारी के अधिकार से वंचित कर देंगे? मैंने भोगा तो नहीं है लेकिन देखा समझा है वर्णाश्रमी विद्रूपताओं को, मेरे बचपन में चरमराता वर्णाश्रमी सामंतवाद पूरा  सक्रिय था. वामपंथ के इतिहास पर अलग से बहस की जा सकती है. दीपंकर भट्टाचार्या और बुद्धदेब किस्म के कम्युनिस्टों से आपकी शिकायत साझा करता हूँ. आइये हमलोग नए ढंग से क्रांतिकारी लामबंदी करें. क्योंकि यहाँ वर्ण और वर्ग एक ही रहे हैं. शासक वर्ण शासक वर्ग भी रहा है.

Dusadh Hari Lal चूंकि श्रीनिवास जी ने सवाल किया था इसलिए ये लिंक दाल दिया क्योंकि ज्यादातर लोग किसी भी चर्चा पर मार्क्सवाद को गाली देने लगते हैं और इस तरह वे शासकवर्गों की ही दलाली का काम करते हैं. जहां तक सीपीआई और सीपीएम की बात है तो उन्होंने बहुत पहले से मार्क्सवादी होना छोड़ दिया है. वे उसी तरह के कम्युनिस्ट जैसे मुलायम सिंह सोसलिस्ट लेकिन अगर पूंजी के पैरोकार अपने को सोसलिस्ट औत कम्युनिस्ट कहरें तो यह सोसलिज्म और कम्युनिज्म की सैद्धांतिक विजय है. लेकिन मित्र आपलोग अगर अपनी सारी ऊर्जा कम्युनिस्टों को गाली देने की बजाय क्रांतिकारी जनमत तैयार करने में खर्च करें तो ये लोग अपने आप अप्रासंगिक हो जायेंगे. कई दलित एक्टिविस्ट खुद पूंजी की दलले अर्ते हुए सारा ध्यान कम्युनिस्टों और मार्क्सवाद को गाली देने में लगा कर ब्राह्मणवाद के खिलाफ लडाई की बजाय ब्राह्मणों के खिलाफ गाली-गलौच में व्यय करते हैं और प्रकानातर से शासक वर्गों की हित साधते हैं. मैं किसी पार्टी में नहीं हूँ और फक्र है कि मार्क्सवादी हूँ, बहुत से लोग मुझे मेरे जन्म की दुर्घटना की अस्मिता को लेकर गाली देने लगते हैं.
[३१.०८.२०१३]

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