स्त्रियों के मामले में ऐय्याश तो तमाम शासक थे, रामायण के राजा दशरथ की कई रानियां थीं, अशोक को कहा जाता है अपने 100 भाइयों की हत्या कर शासक बना था तो बिंदुसार की भी कई दर्जन बीबियां तो रही ही होंगी। राणा प्रताप की 10 पत्नियां थीं। आजादी के बाद हिंदू सिविल कोड कानून बनने के पहले बहुत से रईश कई शादियां करते थे। अधिक उम्र के पुरुषों का कम उम्र की लड़कियों के साथ विवाह के चलते विधवा समस्या विकट थी और विधवा आश्रमों की जरूरत पड़ती थी। विधवा आश्रम की व्यवस्था मेरे ख्याल से किसी और देश में नहीं है। शासक शासक होता है, इस्लामिक या ईशाई नहीं। राणा प्रताप को छोड़कर राजपुताने के सारे रजवाड़े अकबर के दरबारी थे और बिना किसी अपवाद सारे के सारे औरंगजेब के। राणा प्रताप के विरुद्ध हल्दीघाटी की लड़ाई में अकबर का सेनापति राजा मान सिंह था और शिवाजी के विरुद्ध पुरंदर युद्ध में औरंगजेब का सेनापति राजा जय सिंह। औरंगजेब के शासन के ज्यादातर जागीरदार राजपूत और मराठे थे। राजाओं के इतिहास को हिंदू और मुसलमान नरेटिव में पिरोकर समाज को फिरकापरस्ती से विषाक्त करने के अपकर्म से बचना चाहिए।
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1.आप ऐसा कैसे कह सकते हैं कि ज्यादातर लोग बिना पढ़े लाइक-कमेंट कर देते हैं।
ReplyDelete2. वामपंथ के बारे में जाने बिना बात बात पर वामपंथ को प्रत्यक्ष-परोक्ष हर बुरी बात का जिम्मेदार ठहराना, रिवाज सा बन गया है।
3. तथाकथित सेकुलरिज्म की उद्धोषणा कम्युनलिज्म के प्रति श़फ्ट कॉर्नर का संकेत देती है।
4. पोस्ट के दूसरे भाग में अगर हरम या धर्माधता का बचाव दिखता है तो शायद कम्युनिकेसन गैप का माला है। मैं हर तरह की धर्मांधता का एक समान विरोधी हूं। "ज्यादातर राजपूत और मराठे मुगलों के दरबारा, अधिकारी और जागीरदार थे", यह लिखने के पीछे मंशा यही है कि मुगलकाल की राजनैतिक लड़ाइयां और संधियां, राजाओं के बीच थीं, हिंदू-मुसलमान के नहीं। उसे सांप्रदायिक निहित स्वार्थ के चलते हिंदू-मुसलमान नरेटिव में फिट किया जा रहा है।