मैं भी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली पहली पीढ़ी का हूं, दरअसल विश्वविद्यालय पढ़ने जाने वाला अपने गांव का मैं पहला लड़का था। 1967 में 12 साल की उम्र में जब मैं जूनियर हाई स्कूल (मिडिल स्कूल ) की बोर्ड की परीक्षा पास कर कक्षा 9 में प्रवेश लेने शहर (जौनपुर) जाने लगा तो किसान पिताजी ने कहा था कि अब मैं उनसे ज्यादा पढ़ लिया हूं तो अपने फैसले खुद लूं। उनके समय में मिडिल सतवी क्लास तक होता था तो अंदाज लगाया था कि पिताजी शायद मिडिल तक पढ़ रहे होंगे। हाई स्कूल में 2 रु. 2 आना फीस थी, 5 रु. हॉस्टल का रूमरेंट तथा 16 रु महीने मेरिट स्कॉलरशिप मिलती थी। हमने भी लगभग मुफ्त में पढ़ाई की है। इवि में 12-13 रु यूनिवर्सिटी फीस थी और 8-10 रु. रूम रेंट तथा 50-70 मेस बिल। जेएनयू में यूनिवर्सिटी और हॉस्टल की एडमिसन फीस 496 रु थी तथा 10-12 रु फीस और 10 रु हॉस्टल का रूम रेंट जो 120 रु मेरिट-कम-मींस स्कॉलरशिप पाने वालों की माफ हो जाती थी। हम लोगों की पढ़ाई-लिखाई हमारे ऊपर समाज का कर्ज है। इसीलिए हम शिक्षा को राज्य की जिम्मेदारी की मांग करते हैं। दिवि में शिक्षक होने का सौभाग्य मिला।
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