सभी सभ्यताएं आदिम कबीलों और कुटुंबों से ही निकली हैं और तमाम विभिन्नताओं के बावजूद एक दूसरे से मिलते हुए सामासिक रूप से आगे बढ़ी हैं। भारतीय सभ्यता अनेक आर्य-अनार्य कुटुंबों के वर्चस्व के संघर्ष-समागमों. विभाजन-सामासिकताओं की प्रक्रिया से गुजरकर निर्मित हुई हैं। हर सभ्यता में सदैव दो द्वंद्वात्मक प्रवृत्तियां काम करती हैं -- एक विभिन्नताओं के आधार पर सभ्यता को विघटित करने की और दूसरी विभिन्नताओं को समेकित कर सामासिकता विकसित करने की। पश्चिमी यूरोप में विभिन्नताओं के संघषों में सदियों के भीषण रक्तपात के बाद राष्ट्रीय सीमाएं वीजा-मुक्त बन गयी हैं। भारत में उपनिवेश विरोधी आंदोलन के दौरान जहां एक तरफ राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्यधारा विभिन्नताओं को समेकित कर लोगों को भारतीय के रूप में संगठित कर रही थी वहीं दूसरी तरफ औपनिवेशिक शह पर आंदोलन विरोधी ताकतें उन्हें धर्म के नाम पर बांट रही थीं जिसकी परिणति देश के विध्वंसकारी अनैतिहासिक बंटवारे में हुई तथा जिस घाव के नासूर पता नहीं कितनी पीढ़ियों से रिसते रहेंगे। कहने का आशय यह कि किसी समुदाय की उत्पत्ति और विकास के संदर्भ में जन्मगत अस्मिता पर गर्व या शर्म करने की बजाय हमें मनुष्य होने की साझी अस्मिता को रेखांकित करना चाहिए, हमारे आदिम पुरखों ने विवेक के इस्तेमाल से खुद को पशुकुल से अलग करना शुरू किया। बाभन से इंसान बनने के मुहावरे में अहिर से इंसान बनना भी शामिल है। सादर।
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