Wednesday, May 4, 2022

बेतरतीब 127 (विवाह)

 Brijendra Dwivedi मैं अपने पिताजी या दादाजी को अपने बालविवाह का अपराधी नहीं मानता क्योंकि अपराध जानबूझकर किया गया गलत काम अपराध होता है। किसी भी बाल विवाह की तरह मेरे भी बालविवाह की अपराधी प्रचलित सामाजिक कुरीति थी। सामाजिक विकास के अनुरूप सामाजिक चेतना होती है। इस विवाद मैं अपने पिताजी या दादाजी को अपने बालविवाह का अपराधी नहीं मानता क्योंकि अपराध जानबूझकर किया गया गलत काम अपराध होता है। किसी भी बाल विवाह की तरह मेरे भी बालविवाह की अपराधी प्रचलित सामाजिक कुरीति थी। सामाजिक विकास के अनुरूप सामाजिक चेतना होती है। इस विवाह का निर्वहन अच्छे हिंदू नहीं, अच्छे इंसान के रूप में कर रहा हूं। हर व्यक्ति को इच्छाओं की स्वतंत्रता और सामाजिक निष्ठा में समन्वय स्थापित करना चाहिए। मेरी ही तरह मेरी पत्नी की भी शादी तो उनकी मर्जी के बगैर ही हुई थी। यदि किसी सामाजिक कुरीति के दो भुक्तभोगी हों तो एक भुक्तभोगी को दसरे अधिक भुक्तभोगी पर और अत्याचार नहीं करना चाहिए तथा पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री सामाजिक कुरीतियों के अपेक्षाकृत अधिक भुक्तभोगी होती है। विवाह का फैसला मेरा नहीं था लेकिन विवाह निभाने का फैसला मेरा था। इस महीने विवाह के 50 सेल हो जाएंगे, गवन के 47 और साथ रहते 36।

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