Simin Akhter
August 23 at 12:57am
आज बहुत दिनों बाद हिन्दू कॉलेज जाना हुआ और बहुत दिनों बाद ही Ish से मुलाक़ात हुई. बचपन से ही जो बच्चे सहमत और जनम के नाटक देककर और रादुगा की किताबें पढ़कर बड़े हों उन्हें गोरख और विद्रोही की कविताएं ही अच्छी लगती हैं और कॉलेज-यूनिवर्सिटी में SFI और DTF के पर्चों में ग़लतियाँ ही नज़र आती हैं, मगर मैं और मेरे कई दोस्त ऐसे हैं जिनकी पोलिटिकल ट्रेनिंग का एक हिस्सा Ish जैसे टीचर्स भी रहे हैं जिन्होंने हमे टीचर न होते हुए भी बहुत कुछ सिखाया है .. मैं सत्यवती कॉलेज की छात्र रही हूँ जहाँ एक तरफ सी.पी.एम. और dtf के कुछ बेहद 'कमिटेड' और शानदार टीचर्स थे जैसे नेता जी, महेंद्र सिंह और शरत चंद, वहीँ दूसरी तरफ विजय सिंह और शम्सुल इस्लाम जैसे लोग भी थे जिन्हें सुनने के लिए हम अपनी सब्जेक्ट-क्लासेज़ मिस कर के जाते थे .. तीसरे दुसरे कॉलेजेस के वो शिक्षक थे जिनके लेख और वक्तव्य हम सुनते-पढ़ते थे .. मैं Ish को एक लम्बे समय से जन-हस्तक्षेप में पढ़ रही हूँ और हालांकि मैं बहुत से मुद्दों पर उनसे वैचारिक विरोध रखती हूँ, मैंने उनसे एक बहुत अहम बात सीखी है .. यह कि टीचर्स की लड़ाई सिर्फ टीचर्स की लड़ाई नहीं होती, और वह कर्मचारी और छात्रों की लड़ाई से अलग नहीं है .. एक ऐसा सबक़ जो आज सामाजिक चेतना और संघर्ष के लिए बहुत अहम है. यूनिवर्सिटी के स्तर पर अब्सॉर्प्शन का मुद्दा हो या समाज के स्तर पर तीन-तलाक़ का, बहुत सारे जवाब इसी एक सवाल से निकलेंगे.
Ish आज कुछ कमज़ोर नज़र आये और देखकर अफ़सोस भी हुआ मगर उससे कहीं ज़्यादा मज़ा उनसे बात कर के आया .. इसी तरह बेबाक लिखते रहिये, बोलते रहिये .. प्रतिरोध की हर आवाज़ को सलाम, सत्ता और समाज के दमन के विर्रुध हर जन-हस्तक्षेप को सलाम.
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