ज्ञानार्जन की सुकरात की सवाल-दर सवाल की द्वंद्वात्मक पद्धति के इस्तेमाल के लिए साधुवाद। मैं अपनी क्लास में पहली बात यही बताता था कि हर ज्ञान की कुंजी सवाल है तथा अपनी मानसिकता से शुरूकर, हर बात पर सवाल करना चाहिए ।यदि कोई छात्र मुझ पर ही सवाल करता था तो मैं उसे अपनी परम सफलता मानता था। सही कह रहे हैं कि बौद्धिक उद्यम में लीन ब्राह्मण के पास बाध्यकारी शक्ति नहीं होती थी लेकिन उसके पास बौद्धिक और नैतिक शक्ति होती थी। किसी विचारधारा को ही वाद कहते हैं और विचारधारा अपने प्रतिपादक के नाम से जानी जाती है। चूंकि वर्णाश्रम पद्धति की विचारधारा के प्रतिपादक ब्राह्मण थे और शिक्षा द्वारा परिभाषित ज्ञान पर उन्ही का वर्चस्व था इसलिए वर्णाश्रमवाद की विचारधारा ब्राह्मणवाद नाम से भी जानी जाती है।
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