विकास के हर चरण के अनुरूप सामाजिक चेतना का स्वरूप होता है, प्राचीन काल में बौद्ध नवजागरण क्रांति वर्णाश्रमवाद (ब्राह्मणवाद) की तत्कालीन प्रतिक्रिया थी तथा ब्राह्मणवादी प्रतिक्रांति के बाद उसके बौद्धिक औचित्य में निर्मित गुरुकुल शिक्षा प्रणाली एवं पुराण आदि द्वारा स्थाप्त सांस्कृतिक वर्चस्व ने सामाजिक चेतना को अधीनस्थ बना दिया जो प्रतिक्रिया में अब जवाबी जातिवाद (नवब्राह्मण) के रूप में अवतरित हुआ और सामाजिक चेतना के जनवादीकरण के प्रतिरोध में ब्राह्मणवाद का सहयोगी है।
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