Monday, January 24, 2022

नारी विमर्श 23 (स्त्रीवाद)

 मर्दवाद न होता तो हमारे यहां सती प्रथा भी न होती न ही विधवा आश्रम होते। आज भी स्त्री भ्रूणहत्या, 'सम्मान हत्या'. बलात्कार इतनी तादाद में न होते। मैं अपनी बेटियों और छात्राओं को कहता था कि वे भाग्यशाली हैं कि 1-2 पीढ़ी पैदा हो गयीं वरना स्कूल-कॉलेज से दूर घर की चारदीवारी में गुलामी में जीवन कटता। नस्लवाद, सांप्रदायिकता, जातिवाद की ही तरह कोई जीववैज्ञानिक प्रवृत्ति नहीं, विचारधारा है और विचारधारा उत्पीड़क और पीड़ित को समान रूप से प्रभावित करता है. मर्दवादी होने के लिए पुरुष होना जरूरी नहीं है न स्त्रीवादी होने के लिए, स्त्री।


स्त्रियों को कमतर समझना और उस पर वर्चस्व स्थापित करना पुरुषवाद (मर्दवाद) है तथा भेदभाव के विरुद्ध समानता की स्थापना की लड़ाई स्त्रीवाद है।"

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