मेरे बाबा पंचांगकी गणना से हर काम का मुहूर्त निकालते। मैंने हाई स्कूल से ही मुहूर्तों का उल्लंघन करना शुरू कर दिया था। बाबा की मान्यताओं का सर्वाधिक उल्लंघन मैं ही करताम था और मुझे लगता है कि पोतों में सर्वाधिक प्यार वे मुझे ही करते थे। हर बार जब घर आता, मंत्र के साथ नया जनेऊ पहना देते। वापसी में गांव से बाहर निकलते ही निकालकर किसी पेड़ में टांग देता। कुछ दिन बाद उन्होंने यह बंद कर दिया। वे मुझे पागल कहते थे। गौने के बाद मेरी पत्नी जब मेरे घर आईं तो बाबा की बात से उन्हें लगा कि कहीं धोखे से तो उनकी शादी किसी पागल से नहीं हो गयी। पहले तो उन्हें संदेह था फिर यकीन हो गया। अब भी कभी किसी बात पर याद दिला देती हैं कि इसीलिए बाबा पागल कहते थे।
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अब तो यह 52-53 साल पुरानी बात हो गयी, लेकिन किसी पेड़ की डाल पर शायद इसलिए टांग देता था कि कोई मजबूत धागे के रूप में उसका इस्तेमाल कर सके। बाकी पेड़ पर जनेऊ टांगना यदि सनातनी होना होता है तो बचपन में मैं सनातनी रहा होऊंगा। लेकिन मैं जानता ही नहीं कि सनातनी क्या होता है, तो कैसे हो सकता हूं? आप जानते हों तो कृपया ज्ञान वर्धन करें। मैं अकारण कोई काम नहीं करता, किसी विवेकशील व्यक्ति को कोई भी काम अकारण नहीं करना चाहिए। मेरी क्लास में छात्रों को मेरे क्लास में खड़े होने की मनाही थी क्योंकि वे इसका कोई कारण नहीं जानते थे तथा सम्मान के पीढ़ा-दर-पीढ़ी रटा-रटाया जवाब मुझे स्वीकार्य नहीं था।बटुक प्रदेश बेंच से 6 इंच ऊपर उठा देना सम्मान की कोई गारंटी नहीं होती। सम्मान खैरात या दक्षिणामें नहीं मिलता, कमाया जाता है और पारस्परिक होता है।
ReplyDeleteमैंने कब कहा कि इसमें कोई दोष है, या जनेऊ होते समय कुछ गलत सिखाया जाता। 9 साल की उम्र में जनेऊ के लिए बाबा और भइया के साथ विंध्याचल की मनोरम यात्रा , पहली बार पहाड़ पर चढ़ने का सुखद अनुभव आज भी याद है। वापस घर पर उत्सव और भोज का आनंद। बस घुटने के नीचे तक लटकता था इसलिए बीच में गांठ लगाना पड़ता था। लघु-दीर्घ शंकाओं के समय कभी कभी कान पर बांधना भूल जाता था, लेकिन हर नई बात की तरह इसमें भी एक तरह का आनंद था। लेकिन नवीनता का उत्साह 3-4 साल से अधिक नहीं चला। और इसे पहने रहना मुझे अनावश्यक लगा था और निकाल दिया। वापस पहनने का कोई कारण या तर्क नहीं मिला और कोई काम अकारण नहीं करना चाहिए।
ReplyDeleteअतार्किक रूढ़ियों का उल्लंघन करता हूं तथा मानवता के लिए उपयोगी, तर्कसंगत मान्यताओं एवं सिद्धांतों का पालन करता हूं। कथनी-करनी (Theory and practice) में एकता यानि सिद्धांतो को जीने का आनंद उठाने की लगातार कोशिस करता हूं। आत्मालोचना के साथ करनी-कथनी की एकता भी मार्क्सवाद की एक प्रमुख अवधारणा है।
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