हर तरह की सरकारी नौकरी के प्रयासों में असफल लोगों की कुंठा लगातार पेंसन पर निकलती है। उन्हें लगता है उनका बुढ़ापा असुरक्षित है तो दूसरे मजदूरों का बुढ़ापा क्यों सुरक्षित रहे? वैसे भी एक कॉरपोरेटी रहनुमा शासक ने 2004 के बाद नौकरी पाए फौज को छोड़ सभी सुरक्षा बलों समेत सरकारी मजदूरों को भी पेंसन से महरूम कर दिया है। कॉरपोरेटी सरकारों की कृपा से ज्यादातर सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को वैसे भी कॉरपोरेटी धनपशुओं के हवाले कर दिया गया है। बचे-खुचे सरकारी पदों पर कार्यरत सरकारी कर्मचारियों के पेंसन के लिए संघर्ष को कमजोर करने के लिए कॉरपोरेटी एजेंट उनके विरुद्ध दुष्प्रचार से अपनी कुंठा निकाल रहे हैं। हम हर मजदूर के सुरक्षित बुढ़ापे के लिए पुरानी पेंसन योजना की मांग कर रहे हैं। सरकारी नौकरियों की संभावना से वंचित हो चुके मजदूर अपनी रोटी के लिए लड़ने की बजाय जिन्हें मिल रही है, उनकी रोटी छिनवाने के लिए लड़ रहे हैं। परसंताप का सुख अमानवीय होता है।
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