Saturday, January 8, 2022

शिक्षा और ज्ञान 339 (बलि)

 सीता के आग्रह पर हिरण का शिकार राम किस लिए करने गए? जिस समुदाय की जीवन चर्या बलि कुंड के इर्द-गिर्द घूमे उसमें बलि की परंपरा आम है। वैदिक आर्यों और प्रचीन यूनानियों में विभिन्न देवताओं की आराधना बलि से ही होती थी। मैं बहुत बच्चा था जब पहली बार विंध्याचल गया तो मंदिर से नाली में बहता खून देख मन खराब हो गया। उत्तराखंड और हिमाचल में सभी मंदिरों में भेंड-बकरों की बलि आम है। कामाख्या में पंडे जिस फुर्ती से बलि के बाद खाल अलग करते हैं, पेशेवर कसाई भी ऐसा नहीं कर पाएंगे। एक वार में सिर धड़ से अलग न हुआ तो मनौती में खोट माना जाता है। मैं पहली बार (1980) कामाख्या गया तो पंडों द्वारा बलि दिए जाने पर लगा कि शायद पंडे ब्राह्मण न होते हों। कड़ा-मानिकपुर देवी के मंदिरमें माली पंडे होते हैं। मैंने एक पंडे से पूछा कि बलि के प्रसाद [मुंडी देवी (पंडे) का धड़ भक्त (चढ़ावा चढ़ाने वाले) का] पंडा लोग क्या करते हैं? गुस्से में बताया खाते हैं और क्या करते हैं। मैंने यह पूछकर उन्हे और नाराज कर दिया कि पंडा ब्राह्मण होते हैं क्या? उनका गुस्से में जवाब था "और कौन होगा"? ऋगवेद में युद्ध, यातायात-परिवहन में उपयोगिता के चलते केवल अश्व को अबध्य माना गया है। साल में एक बार इंद्र (कुटुंब के नेता) के सम्मान में अश्वमेध यज्ञ होता था। सभी सभ्यताएं कुटुंबों (कुनबों) से निकल कर विकसित हुई है तथा विकास के एक चरण में शिकार आजीविका का प्रमुख स्रोत रहा है। पशुधन के रूप में संपत्ति का ईजाद हुआ। पशुपालन की शुरुआत खेती या दूध के लिए नहीं, आरक्षित ( reserve)भोजन के लिए हुई।

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