समाज की व्यक्ति केंद्रित व्याख्या की शुरुआत करने वाला 17वीं शताब्दी का एक (प्रथम) उदारवादी (पूंजीवादी) दार्शनिक, थॉमस हॉब्स कहता है, "मेरी बात मानने के लिए आपको कुछ और नहीं करना है, बस अपने अंदर झांक कर दीजिए"। उसकी समस्या है कि वह खास ढंग से समाजीकृत व्यक्ति को ही सार्वभौमिक व्यक्ति मान लेता है जो स्वतंत्र ओऔर स्वयत्त होता है। हकीकत है कि व्यक्ति का अस्तित्व स्वायत्त व्यक्ति के रूप में न होकर सामाजिक जीव के रूप में होता है जहां वह अन्य लोगों के साथ अपनी इच्छा से स्वतंत्र खास सामाजिक संबंधों से जुड़ा होता है जिसे मार्क्सवादी शब्दावली में उत्पादन का सामाजिक संबंध कहा जाता है। मार्क्सवादी मान्यताओं से सहमति के लिए अपने इर्द-गिर्द देखने के अलावा कुछ और करने की जरूरत नहीं है।
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