Wednesday, January 19, 2022

शिक्षा और ज्ञान 347 (सांप्रदायिकता)

 Yogendra Bajpai राष्ट्र और संस्कृति अलग अलग चीजें हैं। राष्ट्र आधुनिक अवधारणा है लेकिन संस्कृतियां आदिम काल से ही विकसित होती और बदलती रही हैं। प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिकताएं संस्कृति नहीं है राष्ट्रवाद को विकृत करने और देश की सामासिक संस्कृति को विखंडित करने की औपनिवेशिक पूंजी की कोख से पैदा विचारधाराएं हैं। 1000 साल पहले भारत था ही नहीं खंड-खंड में विभाजित भूखंड था लेकिन 500 साल पहले सोने की चिड़िया था जिसके अंडे चुराने पूंजीवादी संस्कृति के मुहाने पर खड़े यूरोपीय देशों के धनपशु लालायित थे और यहां केमाल में व्यापार करने के लिए 'ईस्ट इंडिया' कंपनियां बना लिए थे। उनमें इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी ज्यादा चतुर और चालाक निकली तथा फ्रांस, पुर्तगाल, नीडदरलैंड की ईस्ट इंडिया कंपनियों को पीछे छोड़, मीर जाफरों, राजारामनारायणों और जगत सेठों की मदद से हिंदुस्तानी माल के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर, मुल्क को गुलाम बनाकर 200 साल तक लूटती रही। इस लूट के विरुद्ध 1857 की संगठित किसान क्रांति ने लूटतंत्र की चूलें हिला दी लेकिन अंग्रेजी धनपशुओं की कंपनी निजामों-सिंधियाओं एवं अन्य सामंती रजवाड़ों की मदद से क्रांति के बर्बर दमन में तो सफल रही। भारत के शासक वर्ग अपने किसान-मजदूरों की आजादी की तुलना में साम्राज्यवादी गुलामी को प्राथमिकता देते रहे हैं। सिलसिला आज भी जारी है। फर्क इतना है कि अब किसी लॉर्ड क्लाइव की जरूरत नहीं है। सारे सिराज्जुद्दौला भी मीर जाफर बन चुके हैं।


अपने भारतीय सामंती दलालों की मदद से औपनिवेशिक शासक क्रांति को कुचलने में सफल रहे, लेकिन भविष्य की क्रांतियों की संभावनाओं से आतंकित हो हिंदुस्तानी आवामी एकता को खंडित करने के लिए बांटो और राज करो की नीति अपनाया। औपनिवेशिक शासकों को साम्राज्यवाद विरोधी विचारधारा के रूप में विकसित हो रहे भारतीय राष्ट्रवाद को खंडित करने के लिए हिंदू और मुस्लिम राष्ट्र की अनैतिहासिक मिथ्या चेतना के प्रसार के लिए हिंदू-मुस्लिम एजेंट मिल गए। इस तरह सांप्रदायिक विचारधारा औपनिवेशिक देन है। इन औपनिवेशिक दलालों की उंमादी लामबंदी के चलते हमें विभाजित आजादी मिली और सांप्रदायिक विचारधारा विभाजन की घाव के नासूर के रूप में पूरे भूखंड में रिसते ही जा रहे हैं। 'खून के धब्बे धुलेंगे कितनी बरसातों के बाद'। कोई किसी को धर्मांतरित नहीं करता लोग खुद धर्मांतरित होते हैं। तीसरी सदी ईशापूर्व तक सारा यूरोप भारत, मिस्र, यूनान, अरब, ईरान की ही तरह बहुदेववादी था।     

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