Sunday, January 16, 2022

बेतरतीब 124 (बचपन में भूत)

 आईआईटी मंडी के निदेशक की ओझागीरी की एकपोस्ट पर एक सज्जन ने कहा कि भूत होते हैं। उस पर :


हमने भी भूत देखा है, लेकिन बाद में वहम साबित हुआ।मिडिल स्कूल मेरे गांव से 7-8 किमी दूर था। हमारे गांव का कक्षा 6 में मैं अकेले था, 7 में कोई नहीं 8 में 3 लोग थे, जिनकी बोर्ड की परीक्षा मार्च में हो जाती थी इसलिए अप्रैल-मई में स्कूल जाने वाला अपने गांव का अकेला था। वैसे तो स्कूल 10 बजे से शुरू होता था लेकिन अप्रैल-मई में 7 बजे से दोपहर 1 बजे तक। मई 1965 में दोपर में स्कूल से आते समय अपने गांव के पहले के गांव के बाहर एक (मुर्दहिया) बाग और अपने गांव के बाहर प्राइमरी स्कूल के बीच लगभग 2 किमी का निर्जन टापू (खेत और ऊसर) था। रास्ते के दाएं-बांए गांव भी थोड़ी-थोड़ी दूरी पर थे। उस समय गर्मी की जलजला धूप होती थी दूर लाल किरणें आवर्ती गति के ग्राफ की आकृति जलजलाती, हिलती दिखती थीं। मैं 9 साल का था (डेढ़-दो महीने में 10 का होता) सलारपर से आगे निकलने पर मुर्दहिया बाग से बखरिया (रास्ते के दायीं तरफ का गांव) के ताल के पास धूप की किरणों में जलजलाती एक कुर्सीनुमा आकृति दिखी। लगा भूत होगा, उस इलाके में कई थे। और हनुमान चालिसा पढ़ना शुरूकर सुरक्षा कवच पहन लिया। नजर थोड़ा इधर-उधर हटी कि वह आकृति गायब। अब तो पक्का हो गया कि भूत ही था। लेकिन लगाकि हनुमान चालिसा काअभेद्य कवच से डरकर भूत भाग गया और उसका डर भी। आगे ताल के पास पहुंचा तो देखा कि एक आदमी गमझे से हाथ पोछते बाहर आ रहा है और मामला समझ में आ गया। वह कुर्सी की पोज में शौच कर रहा था और 'पानी छूने' ताल में चला गया था। यदि वह आदमी न दिखता तो भूत होने की बात गांव के 9-10 साल के बच्चे के दिमाग में घर कर जाती। उसके बाद तो बहुत से खतरनाक भूतों को चुनौती दिया। जब शहर पढ़ने गया और छुट्टियों में घर आने पर रात में चौराहेबाजी करके लौटते समय नदी के बीहड़ में बहुत बाबा-माइयों के स्थानों से गुजरता। कुछ और रोचक कहानियां हैं, फिर कभी।

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