वह जमाना हिंदू-मुसलमान नहीं, तलवार के राज का जमाना था. इन देशभक्तों के पास इसका कोई जवाब नहीं है कि शूरवीरों के इस विशाल देश में नादिरशाह जैसा चरवाहा कुछ हजार घुड़सवारों के पेशावर से बंगाल तक रौंदकर चला कैसे जाता था? जिस समुदाय में शस्त्र और शास्त्र पर मुट्ठी भर लोगों का एकाधिकार हो, जो समुदाय अपने बड़े हिस्से को अछूत मानता रहा हो, उसे कोई भी रौंद सकता था. मुगल महज तलवार लेकर ही नहीं आए, वे तमाम फल-फूल के बीज, शिल्प और तहजीब भी साथ लाए थे जिसने इसकी मिट्टी में मिलकर इस मुल्क को सोने की चिड़िया बना दिया, जिसका शिकार करने को यूरोपीय व्यापारिक कंपनियां लालायित हो गयीं थी. निर्मम बहेलियों ने उसे लहू-लुहान कर दिया लेकिन उसकी जिजीविशा ने उसे जीवित रखा. भक्त इसकी बची-खुची जान से परेशान हैं.
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